चलो बादलों की
जेब से
सूरज चुरा लायें
रख दे फिर उसे
उन गरीबों की
बस्ती में
ताकि कोई भी
ठंड से न हो
उन्ही बादलों के हवाले
रात फिर ठण्डी
हवाओं को
भर दें
बादलों के
जैकेट में
और ओस की बूंदों को
चाँद की टोपी
में छुपा दें
ताकि ठंड में भी
सो सके फुटपाथों पर
सुकून की नींद
सुकून के क्षण तलाशती सुन्दर रचना। शुभकामनाएं आदरणीय रेवा जी।
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (22-01-2019) को "गंगा-तट पर सन्त" (चर्चा अंक-3224) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
उत्तरायणी की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार
Deleteबढ़िया सोच दरशाती सुंदर प्रस्तूति।
ReplyDeleteshukriya
Deleteबहुत बढि़या
ReplyDelete