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Saturday, June 29, 2013

न मौत है न ज़िन्दगी

न कोई ख्वाइश है
न ख्वाब
न कोई जुस्तजू है
न आरज़ू  ,
न इल्तेज़ा है
न फ़रमाइश
न दुआ है
न मन्नत ,
न दौलत है
न शौहरत
न प्यार है
न विसाले यार,
हवा ने ऐसा रुख मोड़ा कि
न मौत है
न ज़िन्दगी /

रेवा


Thursday, June 27, 2013

net chatting

नेट पर बात करना क्या गुनाह है , शायद हम औरतों को ऐसा नहीं करना चाहिए ..........अनजान लोगो से तो बिलकुल भी नहीं / आप शादी शुदा हो सामने वाला भी है ,फिर भी लोग फ़्लर्ट करने से बाज़ नहीं आते ,
मेरी सहेली को मेरे ही friendlist से किसी ने रिक्वेस्ट भेजा , उसने ऐड कर लिया ,उसे लगा मैं जानती हूँ तो अच्छा ही होगा , दो दिन की बातों मे ही उस बन्दे ने फ्लिर्टिंग करनी शुरू कर दी , फिर आखिर उसने उसे  unfriend कर दिया ,फिर मुझे सारी बात बताई / ऐसा पहले मेरे साथ भी हुआ था , मुझे इन सब के पीछे मानसिकता समझ नहीं आती /

Wednesday, June 26, 2013

"बदलाव ही जीवन है "

कहते हैं
शब्दों के द्वारा
मन के भावों को
व्यक्त किया जा सकता है
पर जब मन मे
तूफान उठा हो
हर तरफ उथल पुथल मची हो
तो न शब्द साथ देते हैं
न मन ...
समुद्र के तूफ़ान को शांत करना
जितना मुश्किल है
उतना ही कभी कभी
मन मे उठे तूफ़ान को रोकना
या उसकी दिशा बदलना ,
ऐसे मे अगर कुछ साथ देता है तो बस
एक विश्वाश की ये स्तिथि भी
बदल जाएगी क्युकी
"बदलाव ही जीवन है "


रेवा

Saturday, June 22, 2013

इस दशा के लिए हम ही जिम्मेदार हैं

हमने जब कुदरत से छेड़ छाड़ करी
तो हमारी जरूरत 
जब कुदरत ने उत्तर दिया 
तो वो निर्मम ,
हमने नदियों को बांधा 
उनका रुख मोड़ने की कोशिश की 
तो हमारी जरूरत 
जब वहीँ नदियों ने उफन कर 
बाढ़ का रूप ले लिया 
तो वो निर्मम ,
हमने पहाड़ों को खोखला 
कर दिया 
तो हमारी जरूरत 
उन्ही पहाड़ों ने जवाब दिया 
तो वो निर्मम ,
पेड़ों को काट काट धराशाई किया 
तो हमारी जरूरत 
मौसम ने जब अपने  दिखाए 
तो वो निर्मम 
वाह रे इंसान यहाँ भी बस अपने बारे मे सोचा 
इसलिए शायद आज इस दशा के लिए हम ही जिम्मेदार हैं 

रेवा 






Thursday, June 20, 2013

तो करार आये

एक बार तुझसे रूबरू मिल लूँ
तो करार आये ,
एक बार तेरी प्यार भरी बातें सुन लूँ
तो करार आये ,
एक बार तेरा लाड़ ,तेरा प्यार वो महसूस कर लूँ
तो करार आये ,
एक बार तुझसे "मेरी लाडो " सुन लूँ
तो करार आये ,
एक बार तेरी आवाज़ मे खुद को डुबो लूँ
तो करार आये ,
एक बार तुझे अपने आगोश मे भर लूँ
तो करार आये ,
तेरे साथ रहे बिना भी ,तेरे साथ जीती रहूँ
तो करार आये /

"प्यार मे तेरे जी कर सुकून पाया
समां कर तुझमे मैंने अपना वजूद पाया "


रेवा





Monday, June 17, 2013

"मरना है तेरे प्यार मे "

नहीं कहूँगी कभी की
मरना है तेरे प्यार मे,
मरने के लिए कौन कम्बखत
प्यार करता है ,
प्यार तो जीने का नाम है
मुझे तो हर छण
जीना है तेरे साथ ,
जीवन से
छोटे छोटे पल चुरा कर
उनमे खुशियाँ भरनी है
प्यार और एहसास भरने है ,
ऐसे जीना है की
ये उम्र भी छोटी पड़ जाये
हमारे प्यार के सामने ,
तो ऐ प्यार करने वालों
कभी न कहना "मरना है तेरे प्यार मे "

रेवा


Monday, June 10, 2013

वक़्त की धुल

आज बहुत दिनों बाद
अपनी पुरानी डायरी खोली,
जब उसके पन्ने पलटे
तो हर पन्ने के साथ
पुरानी सारी बातें
चलचित्र की भांति
आँखों के सामने आ गए ,
उन बीते
प्यार भरे पलों को
साँसों मे महसूस करने लगी  ,
उनकी खुशबू मुझे
फिर से बेक़रार करने लगी,
ऐसा लगा मानो
तुमसे अभी नयी-नयी मुलाकात हुई हो
वक़्त की धुल चाहे जितनी
पड़ जाये ,
पर एहसासों मे धुल कभी नहीं जमती .......

रेवा




Thursday, June 6, 2013

एक्सपायरी डेट




मुझे लगा था
ताउम्र निभा लुँगी ये रिश्ता ,
जैसे हर बात तुमसे
साँझा किया है आज तक 
आगे भी करुँगी 
पर शायद नहीं ,
कितने दिन चलता तुमसे 
ये बातों का सिलसिला  ?????
कभी तो ख़त्म होना था न 
मैं ही भूल गयी थी की 
हर चीज़ की उम्र होती है 
उसके बाद वो काम नहीं करती ,
जैसे हर चीज़ की
एक्सपायरी डेट होती है 
शायद आजकल रिश्ते भी 
एक्सपायरी डेट के साथ बनते हैं। 

रेवा 





Sunday, June 2, 2013

कृप्या मार्गदर्शन करें

एक सवाल आप सबसे ,कृप्या मार्गदर्शन करें

एक अंधविश्वाश या नहीं  ??

मेरे घर मे अक्सर बड़ों ने  कहा है , रात को आटा लगा कर यानि गुथ कर फ्रिज मे
नहीं रखना चाहिए ,दुसरे दिन काम मे लेने के लिए ......अगर लगा हुआ आटा रात का बच जाये
तो रोटी बना लो पर रखो मत .....अगर हम रख देते हैं तो उससे घर मे रुपये पैसे की
बरक्कत नहीं होती , कमाई होती है पर दिखती नहीं। पर मुझे ये एक अन्धविश्वाश
लगता है ,कोई सम्बन्ध ही नहीं लगता एक दुसरे से .............आप बताएं आपको क्या
लगता है ??????

रेवा

Saturday, June 1, 2013

ऐ बचपन

ऐ बचपन
आज फिर तेरी याद आयी
फिर हो गयी आंखें नम ,
तड़प उठा मन
जीने को हर वो छण ,
गुड्डे गुडिया की शादी
वो कबड्डी के खिलाड़ी ,
लुका छिप्पी का खेल
वो छोटी सी रेल ,
कभी होती थी रेस
कभी गुड्डी के पेंच ,
माँ को मनाना
थोड़ी देर और खेलने का बहाना ,
उफ़ वो दस पैसे की नारंगी टॉफ़ी
और खट्टे मीठे गोले ,
भैया से झगड़े
पापा से शिकायत
भैया की शामत ,
बात बात पे दुलार
ज़िद और प्यार ,
यहीं तो है अब बस मेरे पास
ऐ बचपन लौट आ न तू एक बार .....................


रेवा