शाम को जब
दिन के तमाम
उलझनों से
फारिग होकर
छत पर टहलने
जाती हूँ तो ,
प्रकृति की छटा
देखते ही बनती है
सूरज अपने बिस्तर पर
विश्राम करने की तैयारी
में उलझा रहता है ,
तो उधर चाँद उठने को बेताब ....
कहीं लालिमा बिखरी रहती है
तो कहीं एकदम नीला आकाश
पवन भी दिन भर
सूरज की सेवा से मुक्त हो
उन्मुक्त बहने लगता है
और पंछी घर जाने की
खुशी में कलरव
करते नज़र आते हैं
आह ! ये वातावरण मेरा
मन मोह लेता है.....
पर पता है ऐसे समय मुझे
सबसे ज़्यादा क्या याद
आता है ??
तुम ....सिर्फ तुम और
तुमसे जुड़ी तमाम शाम !!!!
रेवा
बहुत सुंदर
ReplyDeleteतुम सिर्फ तुम
और तुमसे जुड़ी तमाम शाम!!!
shukriya
Deleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 28.06.18 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3015 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
शुक्रिया
Deleteशुक्रिया
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन पंचम दा - राहुल देव बर्मन और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार। ।
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteआभार
Deleteवाह!!बहुत खूब!
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteसुंदर रचना मन की गहराई से उठी।
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteप्रकृति तो सदा ही खूबसूरत रही है हमारा ही दृष्टिकोण बदलता रहता है
ReplyDeleteसच कहा आपने ...शुक्रिया
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteशुक्रिया
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