कभी कोई
खुश्बू सांसों
में समा जाए
तो उसे हम नहीं कहते
मुझे तुमसे मोहब्बत है
में समा जाए
तो उसे हम नहीं कहते
मुझे तुमसे मोहब्बत है
कभी ठंडी पुरवाई
बदन को छू जाए तो
उसे भी हम नहीं कहते
मुझे तुमसे मोहब्बत है
बदन को छू जाए तो
उसे भी हम नहीं कहते
मुझे तुमसे मोहब्बत है
वो रंग जो मन को
भा जाते हैं
उनसे भी नहीं कहते हम
सुनो मुझे तुमसे मोहब्बत है
भा जाते हैं
उनसे भी नहीं कहते हम
सुनो मुझे तुमसे मोहब्बत है
प्रकृति की मनोहारी छटा
जो दिल पर छप जाए
उसे भी हम नहीं कहते
मुझे तुमसे मोहब्बत है
जो दिल पर छप जाए
उसे भी हम नहीं कहते
मुझे तुमसे मोहब्बत है
वैसे ही हो तुम
मेरी दुनिया
ये सब तुममे ही समाहित है
तुम्हें भी मैं नहीं कहता
मुझे तुमसे मोहब्बत है
ये सब तुममे ही समाहित है
तुम्हें भी मैं नहीं कहता
मुझे तुमसे मोहब्बत है
#रेवा
#इमरोज़
#इमरोज़
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (20-10-2018) को "मैं तो प्रयागराज नाम के साथ हूँ" (चर्चा अंक-3123) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शुक्रिया
Deleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteआभार
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ReplyDeletethank u
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