एक अधूरापन सा
सदा रहता है दरम्यान.....
चुभती हैं वो सारी बातें
जो मैंने चाहा पर
तुम समझ नहीं पाए .....
बस जरुरत की
हर चीज़ देते गए
ये न सोचा की
दिल जरुरत से नहीं
प्यार से भरता है ....
मकां तो दिया
रहने को
पर दिल खाली कर दिया ......
ऐसा नहीं की इन बातों से
मुझे अब फर्क नहीं पड़ता
पर कब तक सिसकती
सुलगती रहूँ
इसलिए
दफ़न कर दिया है इनको
मन की चारदीवारी में
और ऊपर से मुस्कान
बिछा दी है
ताकि कोई
झांक कर पता न कर पाए की
मैं अधूरी हूँ या पूरी.....
रेवा
वाह वाह सुंदर लेखन और अधिकांश स्त्री जीवन का सत्य
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया
Deleteबहुत सुंदर रचना 👌
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ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 11.10.18 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3121 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
शुक्रिया
Deleteवाह अनुपम
ReplyDeleteपोंछ कर अश्क अब मुस्कुराती हूं मैं
छाले दिल के न किसीको दिखाती हूं मै।