ललिता रोज़ काम पर आती और बड़ बड़ करती रहती.......
"छोड़ देब अपन मरद के, अब न रही ओकरे साथ .... सगरा दिन पी कर पड़ल रहत है "
घर घर काम करके ४ बचवन के बड़ा कईली , पर ओकरा ओही ढंग ढाचा बा ......
बस "बड़का बिटवा कामये खाए लगे, फेर चल जाब इ घर दुआर छोड़ के "
इस बात को चार महीने हो गए बेटे को नौकरी भी मिल गयी।
पर आज फिर रोते रोते आई "बीबी जी कुछो पेइसा एडवांस दे दो , मरद का सर फट गवा "
मैंने बोला "बेटे से क्यों नहीं लेती ?? " अब तो कमाने लगा है।
बोली "का करे बीबीजी बेटा भी बाप के जेइसन पी कर घर आवत है ...... हम के अउर बिटिया के मारत है "
हमरी किस्मत में कहाँ सुख ??
फिर उसने मेरा हाथ पकड़ा और कहा "आप हे सही बोलत रहे "
हम अपनी बिटिया को अइसन नरक म नाही देब ..... अउर ३ - ४ घर काम पकड़ लेब ...पर ओकरा खूब पढ़ा लिखा कर अच्छा घर मा बियाह करब।
उसका चेहरा दुःख में भी इस निश्चय के साथ चमकने लगा ,और मुझे अपार ख़ुशी हुई की कम से कम एक लड़की की ज़िन्दगी में मैं कुछ अंतर ला पाई ।
#रेवा
बहुत सुंदर कहानी 👌
ReplyDeleteshukriya
Deleteसार्थक रचना 🙏
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteआभार
ReplyDeleteसुन्दर कहानी
ReplyDeleteshukriya
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