कमला दोपहर होते तक, घर का काम करते करते थोड़ा सा थक जाती थी, ४३ की हो गयी है, यूँ तो उम्र के इस पड़ाव तक आते आते लोग सेटल हो जाते हैं। पर ऐसा कमला के साथ नहीं था......अभी अपना घर भी नहीं ले पायी थी ……अभी तो बुक करवाया है …लोन ले कर उसकी किश्ते चुकाती थी हर महीने ……महीने के अंत तक हाथ एकदम खाली, पति को क्या बोले जानती वो खुद भी थी की कुछ बचता नहीं।
बेटे का अब १२ पूरा हो गया अब उसके आगे की पढ़ाई के लिए पैसों का जुगाड़ करना था, बेटे को लैपटॉप फ़ोन दोनों चाहिये था, बेटी भी १० में आ गयी अब फ़ोन उसे भी चाहिये।
उधर नन्द की बेटी की शादी होने वाली है, भाई को भात भरने की रस्म करनी होती है, उसके लिए भी मोटी रकम चाहिये।
अपने लिए तो कभी कुछ सोच ही नहीं पाती कमला, उसका भी मन करता कभी अपने लिए कुछ साड़ी ले ले , पर आजकल कपड़े गहने के दाम मे मिलने लगे हैं। बच्चों के साथ बाजार जाती, काफी चीज़ों पर मन चलता पर फिर लगता बच्चों को ज्यादा ज़रुरी है सामान दिलवाना, वो तो कैसे भी चला लेगी, मन मसोस कर रह जाती। सारे महीने बस दूसरे महीने के हिसाब में निकल जाते।
आज यही सब उसके दिमाग मे घूम रहा था की अचानक हँस पड़ी, इस बात पर की "लोग कहते हैं ४० के बाद जिम्मेदारी कम हो जाती है, अपनी ज़िन्दगी एन्जॉय कर सकते हैं, अपने मन की कर सकते हैं, पर क्या आम मिडिल क्लास गृहणी ऐसा कर सकती है ???
#रेवा
बहुत सुंदर कहानी 👌
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteआभार
ReplyDeleteबढ़िया
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteमहीन भावों का भावपूर्ण चित्रण है रेवा जी।
ReplyDeleteचाहे उम्र कोई भी हो औरत हमेशा स्वयं को प्राथमिकता की सूची में सबसे पीछे रखती है।