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Wednesday, July 18, 2018

मेरा साया



दिन में वो साया
जो हल्की
धूप में
साथ नज़र आता है
वो अंधेरी रातों को
अकेला कर
कहाँ चला जाता है ??

उसके साथ रहते हुए भी
इतनी तन्हाई 
क्यों महसूस होती है ?
अपनी लकीरों में तो उसे
पाया है न
फिर भी क्यों दूर मुझसे
मेरा साया है ??

जब चाहती हूं
उसमे सिमटना
अपना दर्द बांटना
उसके बाजुओं को
अपने आंसुओं से भिगोना
तो वो क्यों नहीं मिलता ?

कहाँ चला जाता है
हर बार
मुझे यूँ अकेला कर
मेरा ही साया ??


#रेवा

8 comments:

  1. बहुत खूब 👌👌 शानदार रचना

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    1. शुक्रिया अनुराधा जी

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 19.7.2018 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3037 में दिया जाएगा

    धन्यवाद

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  3. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 100वां जन्म दिवस - नेल्सन मंडेला और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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