स्त्री हैं हम
हमारा कोई
स्थायी पता नहीं होता
जहाँ हम पैदा
होतीं हैं वहां
ताउम्र रहतीं नहीं
जहाँ उम्र गुजारती हैं
वहां कुछ इस तरह
रहती हैं
जैसे पांव के नीचे
खाई हो जिसमें
हम धस नहीं सकती
और सर पर जो
नीला आसमान है
उस पर पंछी बन
उड़ भी नहीं सकती
ज़िन्दगी इनके
बीच तारतम्य बैठाते
गुज़र जाती है ....
हमारा कोई
स्थायी पता नहीं होता
जहाँ हम पैदा
होतीं हैं वहां
ताउम्र रहतीं नहीं
जहाँ उम्र गुजारती हैं
वहां कुछ इस तरह
रहती हैं
जैसे पांव के नीचे
खाई हो जिसमें
हम धस नहीं सकती
और सर पर जो
नीला आसमान है
उस पर पंछी बन
उड़ भी नहीं सकती
ज़िन्दगी इनके
बीच तारतम्य बैठाते
गुज़र जाती है ....
#रेवा
#स्त्री
#अमृता की "खामोशी के आंचल में"
पढ़ते हुए
पढ़ते हुए
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 17 जुलाई 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteशुक्रिया यशोदा बहन
ReplyDeleteबहुत खूब 👌
ReplyDeleteशुक्रिया anuradha जी
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (18-07-2018) को "समय के आगोश में" (चर्चा अंक-3036) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
शुक्रिया
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