याद है तुम्हें
वो झील के
किनारे की पहली
मुलाकात
कितना हसीं था न
वो इत्तेफ़ाक
किनारे की पहली
मुलाकात
कितना हसीं था न
वो इत्तेफ़ाक
तुम किसी और शहर के
मैं कहीं और की
अपने अपने शहरों से दूर
मिले थे किसी और जगह पर
देखा नहीं कभी एक
दूजे को
पर बातों ही बातों में की थी
अनगिनत मुलाकात
एक ख़्वाहिश
जरूर थी दिल में
एक बार
तुम्हें इन नज़रों से
निहारूँ तो सही
मैं कहीं और की
अपने अपने शहरों से दूर
मिले थे किसी और जगह पर
देखा नहीं कभी एक
दूजे को
पर बातों ही बातों में की थी
अनगिनत मुलाकात
एक ख़्वाहिश
जरूर थी दिल में
एक बार
तुम्हें इन नज़रों से
निहारूँ तो सही
उस दिन लगा
ऊपर वाले ने
सुन ली मेरे दिल की पुकार
तुम और मैं मिले थे फिर
झील के इस पार
ऊपर वाले ने
सुन ली मेरे दिल की पुकार
तुम और मैं मिले थे फिर
झील के इस पार
भरी भीड़ में पहचान लिया था
तुमने मुझे
और फिर पी थी हमने
कॉफी बातों के साथ
कुछ देर में चले गए तुम
और मैं भी
पर वो शाम
वैसी की वैसी टंगी है
आज तक मेरे दिल की
दीवार पर
जब मन होता है
उतार कर जी लेती हूं
और एहसासों का इत्र लगा
टांग देती हूं फिर उसी जगह !!
तुमने मुझे
और फिर पी थी हमने
कॉफी बातों के साथ
कुछ देर में चले गए तुम
और मैं भी
पर वो शाम
वैसी की वैसी टंगी है
आज तक मेरे दिल की
दीवार पर
जब मन होता है
उतार कर जी लेती हूं
और एहसासों का इत्र लगा
टांग देती हूं फिर उसी जगह !!
रेवा
खूबसूरत एहसास से भरपूर है आपकी रचना
ReplyDeleteशुक्रिया आपका
Deleteवाआआह लाजवाब
ReplyDeleteशुक्रिया सदा जी
Deleteshukriya Dilbag ji
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteshukriya
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