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Monday, July 9, 2018

दरदी बंधु



एक शख्स है ऐसा
जो सब रिश्ते नातों से परे
सबसे ऊपर है

मेरी खुशी में 
अपनी खुशी मिलाकर 
उसे दोगुना करने वाला
दुख में उसे बांट
व्यथा को कम करने वाला 

मेरी आंखें पढ़ कर
दिल का हाल
जानने वाला 

वो शख्स जो
मेरी आँखों में
आंखें डाल
मेरे गलत को
गलत बोलने की हिम्मत
रखने वाला

मेरे साथ हमेशा 
मज़बूत स्तम्भ की तरह 
खड़ा रहने वाला
मेरा हाथ थाम
मुझे आगे ले जाने वाला
लाख रूठ जाऊं
मुझे मना लेने वाला

ये शख्स और कोई नहीं
ये है मेरा दरदी बंधु
मेरा कान्हा .....


रेवा

6 comments:

  1. बहुत सुंदर रचना रेवा जी

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (10-07-2018) को "अब तो जम करके बरसो" (चर्चा अंक-3028) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, सिने जगत के दो दिग्गजों को समर्पित ९ जुलाई “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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