Followers

Sunday, July 1, 2018

महीने का हिसाब



चाहती हूँ मैं भी
नज़्म लिखना
प्रेम में पगी
जीवन से भरपूर
एहसासों में डूबी
भावनाओं से परिपूर्ण
जो पढ़ते ही ले जाए
किसी और दुनिया में

पर जब जब लिखने
बैठती  हूँ
बेख़याली में
लिखने लगती हूँ
महीने का हिसाब

कितना किसको दिया
कितना बाकी है
बजट के अन्दर
सब सँभाल पा रही हूँ
या फिर इस महीने भी
महँगाई के डंडे
और ज़रूरतों से
ओवर बजट की मार
झेलनी पड़ेगी

डूब जाती हूँ फिर
इस सोच में
क्या इस बार भी
कहा सुनी हो जाएगी
खर्च को लेकर ?
या शांति से निपट जायेगा
इस महीने का हिसाब किताब
पर हर महीने
इसी सवाल में अटकी रहती हूँ

चाहती हूँ मैं भी
नज़्म लिखना
पर बेख़याली में
लिखने लगती हूँ
महीने का हिसाब !!!

रेवा



No comments:

Post a Comment