वो जो कन्हैया है न
जो बंसी बजाता है
उसे उसकी बाँसुरी
कितनी पसंद है
प्राणो से प्यारी है
यहाँ तक की राधा और
उनके बीच भी वो रहती है
पर वो बाँसुरी जब बनती है
उसे कितनी मुश्किलों
से गुजरना पड़ता है
उसे काटा जाता है
आकार दिया जाता है
फिर उसके तन पर छेद
किये जाते हैं
उसे चमकाया
जाता है
तब कहीं वो जा कर
कन्हैया के होठों
से लगती है
मेरे भी इम्तिहान का
समय चल रहा है
पर मैं भी चमक कर
एक दिन उस बाँसुरी वाले की
प्रिय बन ही जाउंगी ......
रेवा
वाह बहुत खूब
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (04-07-2018) को "कामी और कुसन्त" (चर्चा अंक-3021) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
शुक्रिया
Deleteआज सलिल वर्मा जी ले कर आयें हैं ब्लॉग बुलेटिन की २१०० वीं बुलेटिन अपने ही अलग अंदाज़ में ... तो पढ़ना न भूलें ...
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, कुछ इधर की - कुछ उधर की : 2100 वीं ब्लॉग-बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
shukriya
Deleteमुरली तऊ गुपालहिं भावति ....
ReplyDeleteआमीन !
ReplyDelete