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Wednesday, December 31, 2014

माफ़ी नामा

साल के अंतिम दिन का
अंतिम सलाम
आप सब के नाम ,
माफ़ कर देना अगर
कभी किसी का
दिल दुखाया हो
बन कर अनजान ,
नए साल मे फिर
हम करेंगे
नयी शुरुआत ,
बस मान जाना मेरी ये
छोटी सी बात………

आप सबको नव वर्ष की ढेरो शुभकामनाएं

रेवा


Tuesday, December 23, 2014

असमर्थ आँखें


तुझे सोचते सोचते
न जाने कब
ये आँखें बहने लगी ,
दुःख से नहीं
शायद तेरे प्यार को
सम्भाल पाने मे
असमर्थ थी ,
इसलिए तो मोती बन कर
इज़हार करने लगी ,
मन तो हुआ के
अभी आकर
तुझे बाँहों मे भर लूँ ,
जानती हूँ नहीं कर सकती ऐसा
पर ख्यालों मे तो तुम्हे
अपने आगोश मे भर कर
प्यार कर सकती हूँ न ,
और अपने मोतियों से
तेरा  दामन
भर सकती हूँ न ..........

"मौसम की तरह नहीं हूँ
 मैं बेईमान ,
 तुझसे प्यार किया है मैंने
 तू है मेरी जान "

रेवा




Wednesday, December 17, 2014

रचनाकार की रचना


कागज़ पर सुनहरे
हर्फों से हम अपने
एहसास बिखेरते हैं ,
जो शब्दों द्वारा
दिल तक पहुँचते हैं ,
सृजन कर्ता के लिए
उसकी हर कृति
उसके बच्चे के समान होती है ,
जो उसके दिल के
बहुत करीब होती है ,
जैसे एक ही माँ के सब बच्चे
एक सामान नहीं होते
वैसे ही रचनाकार की रचना ,
पर कोशिश हमेशा रहती है
श्रेष्ठ लिखने की ..........

"एहसासों के मोती से
पिरोयी  है मैंने शब्दों की माला ,
प्यार भरी रचनाओं से
आला मैंने भर डाला "

रेवा

Friday, December 5, 2014

हँसी


दिखावे की हँसी
तो हर कोई हँस लेता है
पर जब मन हँसता है
तो वो हँसी आँखों मे झलकती है
और ढुलक जाती है
ख़ुशी बन कर ……
हर सुबह ऐसी ही
हँसी तुम्हे देने की कोशीश है .......
मुस्कुराता हुआ तेरा चेहरा
हथेलियों मे भर कर ,
ख़ुशी के फूलों से आँगन
मेहकाने की ख्वाइश है………

रेवा


Wednesday, November 26, 2014

इन चार कन्धों की सवारी


पड़ा था कफ़न मे लिपटा
चार कन्धों पर जाने को तैयार ,
रो रहे थे सारे अपने
पर वो था इन सब से अनजान ,
सजा धजा कर
कर रहे थे तैयारी ,
निकलनी थी आज उसकी
इन चार कन्धों की सवारी .......


कल मेरी भी जाने की आएगी बारी
पर फिर भी इस सच से अनजान ,
मैं इस जीवन के
झूठ - सच ,लालच ,
जलन ,मेरा तेरा
और न जाने ऐसे ही कितनी चीज़ों मे ,
करती हूँ अपने आप को
उलझाने की तैयारी ,
जानते हुए भी की
पड़ी रहूंगी एक दिन मैं भी ,
करने को
इन चार कन्धों की सवारी …………

रेवा

Saturday, November 22, 2014

जरूरी तो नहीं......

प्यार को प्यार मिल जाये
जरूरी तो नहीं ,
दिल को क़रार मिल जाये
जरूरी तो नहीं ,
जीने को तो जी लेते है सभी
ज़िन्दगी मौत से बेहतर हो जाये
जरूरी तो नहीं……

रेवा 

Tuesday, November 18, 2014

आधुनिक युग में बच्चों को पालना एक सबसे बड़ी चुनौती

इस आधुनिक दौर मे बच्चों का सही तरीके से पालन पोषण करना बहुत कठिन कार्य हो गया है।एक ओऱ बच्चों में अच्छे संस्कार देना जरूरी है तो दूसरी ओऱ उन्हें अनुशासित रखना और उनके दोस्त बने रहना भी बहुत जरूरी है। आजकल बड़ों के पाँव छुना , पूजा करना ,ये बचपन मे बच्चे फिर भी सुन लेते हैं ,पर बड़े होने के बाद पुराने ज़माने की सोच कह कर टाल देते हैं। रही सही कसर आजकल इन्टरनेट ने पूरी कर दी है ,जहाँ ये ज्ञान का भंडार है वहीँ बच्चों को बिगाड़ने का सबसे बड़ा साधन ,इसमे गेम्स ,फेसबुक और भी बहुत कुछ है। एक ओर बच्चों के विकास के लिए कंप्यूटर जरूरी है तो वहीँ इन सबसे उन्हें बचाना मुश्किल। मोबाइल फ़ोन एक दुसरी चिंता का विषय बन गया है ,ये भी समय पर देना जरूरी है क्युकी टूशन और एक्स्ट्रा एक्टिविटी के लिए वो सारे दिन बाहर रहते हैं। पर इसके दुष्परिणाम भी बहुत हैं। बच्चे सारा सारा दिन उसी मे लगे रहते हैं ,सार ये है की हमे सब देना भी है और उन्हें उनके दुष्परिणाम से जागरूक भी रखना है ,जोकि सबसे बड़ी चुनौती है। मुश्किल अभी यहीं नहीं  खत्म होती ,बच्चों की ज़िद जो तक़रीबन हर माँ बाप की सबसे बड़ी मुसीबत  है ,जो आजकल देखा -देखी  हर दूसरी चीज़ के लिए होती है, जिसे पूरा करना मुश्किल है और समझाना उससे भी बड़ी मुसीबत ,हम माँ बाप की भी बहुत जगह गलती होती है ,हम बच्चे को हर छेत्र मे अव्वल देखना चाहते हैं ,पढाई खेलखुद और न जाने क्या-क्या और उनपर इसके लिए प्रेशर डालते हैं । 

"कुल मिला कर हर चीज़ मे एक बैलेंस होना बहुत जरूरी है , तभी हम उन्हें देश का एक अच्छा और  सच्चा नागरिक बना पाएंगे"। 

रेवा 



Tuesday, November 11, 2014

ख्वाबों का संसार


हर औरत को
गहने ,कपड़ों और
तोहफों से
बहुत प्यार होता है ,
हर बार शॉपिंग कर के तो
जैसे मन तृप्त हो जाता है ,
घर की सजावट मे
एड़ी चोटी का जोर
लगा देतीं हैं
कीमती सामानों से
सजावट करती हैं,
पर मिनी
वो अलग है
पसन्द उसे भी है ये सब
एक हद तक
लेकिन वो थोड़ी सी जुदा है.......
उसके लिए
सबसे बड़ा तोहफा है
"विश्वाश "
सबसे बेशकीमती गहना है
"प्यार "
उसने घर की सजावट
कीमती सामानों से नहीं
बल्कि "एहसासों" से की है
और यहीं तो है
उसके ख्वाबों का संसार ...........

"प्यार, विश्वाश और एहसासों की
दुनिया
येही ही तो है मन की
तृप्ती का जरिया ,
पा ले इसे जो एक बार
उसकी ज़िन्दगी हो जाये
गुलज़ार "

रेवा


Tuesday, November 4, 2014

ज़िन्दगी


मैं ज़िन्दगी के पन्नों को
जितना भी पढ़ने की
कोशीश करती हूँ
वो उतना ही
उलझती जाती है ….

मैंने प्यार करने की
जिससे भी कोशिश की
वो उतना ही मुझसे दूर
चला जाता है ……

मैंने दिलो जान से
जिससे भी दोस्ती निभायी
वो उतना ही अजनबी
बन जाता है …....

पर  मैं ये नहीं बोलती की
ज़िन्दगी अब तू मुझ पर रहम कर,
सितम जितने चाहे उतने कर
मैं भी फौलादी इरादे रखती हूँ
हर सितम के साथ
और मजबूती से
सामना करने को तत्पर होती हूँ.

"ऐ ज़िन्दगी खेल ले मुझसे तू
जी भर आँख मिचोली,
मैं भी डटी रहूंगी भर कर
बुलंद हौसलों की टोली "

रेवा

Tuesday, October 28, 2014

वो शाम



तुम्हारी जादुई बातों ने
फिर याद दिला दिया
वो सिन्दूरी झील के
किनारे की शाम ,
फिर एहसास हो आया
उस मिलन का
जिसमे सिर्फ
मैं और तुम
हाँथो मे कॉफ़ी लिए
बस अपलक एक दूसरे
को निहार रहे थे ,
उस दिन पता चला
कुछ अधूरा था मुझमे
जो तुमसे मिल कर
पूरा हो गया ,
ज़िंदगी मे ये कुछ देर की
मुलाकात ऐसा महसूस करा
सकती है
ये कभी सोचा न था ,
अब कभी तुमसे दुबारा
मिलना होगा की नहीं
ये तो खुदा जाने
पर उस मिलन की
खुशबु आज भी
मेरे रोम रोम में बसी है..........

रेवा

Thursday, October 9, 2014

मुट्ठी भर एहसास



मुट्ठी भर एहसास
जो हर बार
भर लेती हूँ ........
फिसल जाती है
रेत की तरह
उँगलियों के कोरों से .......
थाम लेती हूँ
सर्द आँहों को
हर रात ………
ताकि हर सुबह
फिर भर सकूँ
एहसासों को ……
जाने कब तक
चलेगा ये सिलसिला…...
अब तो आस  ने भी
हवा के साथ
रुख बदलना
शुरू कर दिया है

रेवा 

Monday, September 29, 2014

बेकाबू आँसू



धो लिये आज आंसुओं से
अपने सारे गम........
भर ली अपनी झोली
फिर इन नमकीन
जल की धाराओं से
चाहती नहीं थी
इन्हें न्योता देना
पर क्या करूँ
इन्सान हूँ
देवताओं जैसी फितरत
कहाँ से लाऊँ..........
जब सहनशक्ति
अपनी हदें पार
कर लेती है
तो ये आँसू बेकाबू
हो जातें हैं
जिनकी किस्मत मे
होता है बह कर
बस सूख जाना ...........


रेवा


Monday, September 22, 2014

क्या होती है बरसात ?



क्या होती है बरसात ?
कैसी होती है ?
ये सवाल आज भी
मेरे लिए सवाल है……

सुना है इसकी बूंदें
जब तन को छूती है तो
एक सिहरन सी महसूस होती है
जैसे किसी ने हौले से प्यार
भरा स्पर्श किया हो.......

बाँहें फ़ैलाये जब
इसमे भिंगो तो
ऐसा लगता है जैसे
किसी ने प्यार से
बाँहों मे भर लिया हो......

जब लटों से
हवाएँ अठखेलियाँ करती हैं
तो लगता है जैसे
किसी ने गिले बालों को
अपनी उँगलियों से
सहलाया हो.......

पर ये सब मैं
महसूस नही कर पाती क्यूंकि
आज भी ऐसी प्यार भरी
बरसात का मैं बस इंतज़ार
ही कर रही हूँ ...........

"बादल बरसे
 प्यार फिर भी तरसे
 गीला वन-उपवन
 पर सुखा है तन -मन "

रेवा


Thursday, September 18, 2014

आज भी बचपन याद आता है !



आज भी बचपन याद आता है
मस्ती भरे दिन
अल्हड़ हर पल छीन........
बारिश मे भीगना
कीचड़ मे खेलना
वो कागज़ की नाव बनाना.......
होली मे रंग बिरंगे
गुब्बारे मारना
और छिप जाना.......
आज भी बचपन याद आता है

तड़पता है दिल
भीगती हैं आँखें
याद कर वो दिन .......
पर ये भी सच है
ये जीवन चक्र है,
मगर दिल के एक कोने
मे एक बच्चा अभी
भी रहता है ,
बहार आने को जो मचलता है
पर जब जब वो बहार
आता है
उसे फिर से ये कह कर
धकेल दिया जाता है की
"इस उम्र मे इतना बचपना
 शोभा नहीं देता है"
 पर क्या करें
 आज भी बचपन याद आता है

रेवा



Wednesday, September 10, 2014

क्या वो इंसान कहलाने लायक हैं ?




ये कैसे लोग हैं  ?
माँ के कोख़ मे पल रही
नन्ही कलियों को
मार देते हैं  ,
इससे भी मन नहीं भरता
तो पैदा होते ही उन्हें
कभी अनचाही
कभी नाजायज़
क़रार देते हुए
मंदिर ,नालों, कूड़ेदानों
और न जाने कहाँ -कहाँ
फेक कर चले जातें हैं ,
जैसे बच्ची न हो
कूड़ा हो ......
ऐसे करने वालों को
ये प्रश्न क्यों नहीं सालता की
'क्या वो इंसान कहलाने लायक हैं '?

कई बार ये काम वो उस
माँ से करवाते हैं
जिसने अपनी कोख मे
९ महीने रखा उस बच्ची को ,
जाने कितनी बार उसे
सहलाया , पुचकारा
उसकी धड़कने महसूस की ,
उसके हरकत करने पर
मन ही मन मुस्कायी ,
अपनी खून से सींचा
उस नन्ही परी को  ,
उसके नन्हे नन्हे हाँथ पैरों की
कल्पना की,
उसके साथ जाने कितने
अनगिनत संजोये ,
दिन रात ,हर घड़ी हर पल
उसकी रक्षा की ,
उसे अपनी गोद मे
उठाने के इंतज़ार मे
हर कष्ट हँस कर सहा  ............
उसी माँ से उसकी बच्ची
छीन लेना उफ्फ्फ !
प्रश्न सिर्फ ये नहीं की
क्या वो इंसान कहलाने के लायक हैं ?
ये भी है की....... हम सब इसे रोकने के लिए क्या कर रहे हैं ?

रेवा














Thursday, August 28, 2014

जाने क्यूँ .........




जाने क्यूँ .........
कभी-कभी घर का काम
करते -करते कुछ गानों  के शब्द
ऐसे मन को छू जातें हैं की
बैठ कर उसे पूरा सुनने को  
और उस गीत मे
खो जाने को मन करता है
जाने क्यूँ………

और तब गीत सुनते सुनते

दिल भरने लगता है
आँखों से अविरल आँसू
बहने लगते है
जाने क्यूँ………

मन करता है

तुम्हारे कंधे पर
सर रख कर
रोती रहूँ
आँसुओं से
तुम्हे भिगोती रहूँ
जाने क्यूँ………

भूल जाऊँ

सारे गीले शिकवे
भूल जाऊँ सारे गम
तुम्हारे आगोश मे समाये
बस लेती रहूँ हिचकियाँ
जाने क्यूँ………


मगर माँगा हुआ कुछ नही मिलता
मन को समझाओ 
जितना भी बहलाओ
नही समझता 
और उलझता है,
क्या तुम ने ही कह दिया है इस दिल से
ज़माने से फ़ुर्सत पा के तुम इस के पास आओगे
और इस के हर बात मान जाओगे
यही सच लगता है
जाने क्यूँ .......?

रेवा


Saturday, August 23, 2014

जुड़ाव


वो जो ऊपर बैठा है न
जाने कैसे कैसे खेल रचता है ......
अचानक किस-किस से मिला
देता है ,
जीवन यूँ भी तो जीते रहते थे हम
उतार चढ़ाव सहते रहते थे हम
पर जाने क्यों
कभी किसी ऐसे
इंसान से मिला देता है की
लगता है आज तक कैसे
जी रहे थे हम ,
उसके साथ की तब
हर मोड़ पर जरूरत
महसूस होने लगती है,
समझ ही नहीं आता
इतने दिनों कैसे संभाल
रहे थे हम ,
चाह कर भी उस इंसान से
दुरी नहीं बना पाते,
शायद जुड़ाव सिर्फ
जरूरत से नहीं
बल्कि एहसासों से
कर लेते हैं हम .............

"दिल की ये कैसी हसरत हो गयी
तेरी मुझे ये कैसी आदत हो गयी
यूँ मिलने को तो मिल जाते हैं कई लोग
पर तू रूह से जुड़ा है
तुझसे मुझे मुहब्बत हो गयी "

रेवा

Saturday, August 16, 2014

मनुहार





तेरे प्यार मे ओ कान्हा !
भूल गयी मैं आना - जाना
एकटक बस निहारती हूँ तुझको
जाने कैसे आकर्षण मे
बांध लिया है मुझको ,

जब - जब तू हो जाता है उदास
बंद हो जाती है
मेरी भी भूख प्यास ,
बार - बार करती रहती हूँ मनुहार
होंठ लगा बाँसुरी
मुस्कुरा दे तू एक बार,

बस आज कर दे तू ये कमाल
तो ज़िन्दगी भर के लिए
मैं हो जाऊँ निहाल……………

रेवा

Thursday, August 14, 2014

परवरिश या परिवेश

हम सभी माँ बाप अपने बच्चों से बहुत प्यार करते हैं.…उन्हें हर ख़ुशी देने की कोशिश करते हैं ....... खास कर के वो ख़ुशी जिससे बचपन में हम महरूम रहे हों .....…बच्चे एक बार को हमे तकलीफ दे भी दे , पर हम कोशिश करते हैं की उन्हें कम से कम तकलीफ हो ....... पर कई बार बच्चे हमारे इस प्यार का नाजायज़ फ़ायदा भी उठाते हैं,जब उन्हें  ये लगता है की उनके लिए हमारा प्यार हमारी कमज़ोरी ,वो अच्छी तरह सीख  लेते हैं बातों के जाल बुनना और भावुक कर के अपनी बात मनवाना  और तब शायद ये प्यार उनके लिए ज़ेहर बन जाता है......उन्हें समझाने का कोई फ़ायदा ही नहीं होता उस समय। कुछ सुनने को तैयार ही नहीं होते …… हम माँ बाप की मुश्किलें यहीं नहीं खत्म होती , आजकल फेसबुक और वॉटसअप के ज़माने मे बच्चों  को सम्भालना और समझाना दोनों ही मुश्किल हो गया है....... दोष इसमे भी हमारा है,क्यों बनाने दिया अकाउंट फेसबुक पर क्यों दिलाया  मोबाइल ?जवाब कुछ नहीं होता क्युकी वो  हमे भी पता नहीं होता बच्चों की किस बात मे आकर हमने ये करने दिया,और जब देखते हैं कुछ नहीं कर पा रहे तब  फिर रास्ता बचता है सख्ती का....…शायद देर कर देते हैं हम ………क्युकी ऐसा करने से  दिल दुखता तो है ही साथ साथ डर भी लगता है की कहीं सख्ती के कारण बच्चा कुछ कर न ले ……  समझ नहीं आता  कमी कहाँ रह जाती है …"हमारी परवरिश मे या आज के परिवेश मे " या बच्चे होते ही ऐसे हैं ? या गलती हमारी ही होती है।


रेवा 

Wednesday, August 6, 2014

सीली यादें



आहा !
प्यार भरी वो बारिश
सदा याद रहेगी मुझ को
जी भरकर भीगे थे हम
हर लम्हा हर पल
जीया था हमने
इन्द्रधनुषी सपने जैसा

पर बरसात के मौसम की तरह
तुम भी अब गुम हो गए हो कहीं
कई मौसम आये गए
पर तुम न आये
अब तो बस
रह गयी है
कुछ सीली यादें

अलमारियों में
बंद तुम्हारे खतों में अब
फफूँद लग गयी है
जिसे हर बरसात के
बाद साफ़ कर धूप में
रख देती हूँ ...

दिल की दीवारों से भी अब
पपड़ी बन झड़ने लगी है
तुम्हारी यादें और
धब्बे नज़र आने लगे हैं

मैंने सोचा उन पर
वास्तविकता
का रंग लगा दूँ
पर दोबारा उन पर
कोई भी रंग
क्यों न चढ़ा लो
वो अपने होने का एहसास
करवा ही देते हैं.…

और किसी न किसी
रूप में बनी रहती
हैं ये यादें

रेवा

Wednesday, July 30, 2014

आकाश और धरती का प्यार


आज जब छत पर खड़ी
आकाश और धरती को
निहार रही थी ,
तो अचानक ख्याल आया
की कितने दूर हैं न दोनों
एक दूजे से ,
रोज़ टकटकी लगाये
देखते रहते हैं
एक दूजे को
पर मिल नहीं पाते .......
उनकी तड़प का
अंदाज़ा लगाना मुश्किल है ........
बाँहें फैलाये धरती
बस आकाश का ही
इंतज़ार करती रहती है........
और तड़प की हद
जब पार हो जाती है
तब होती है बरसात…....
आह ! कैसी
खिल उठती है न धरती
हरी चूनड़ ओढ़
फिर वो
तन - मन
से स्वागत करती है
अपने प्यार का..........


रेवा

Tuesday, July 29, 2014

ईद



आया दिन ईद का
चाँद दीद का
गले मिलो
खा लो मिठाई
दुआ करो
कभी हो न जुदा
हम हिन्दू मुस्लिम
भाई - भाई

रेवा 

Friday, July 25, 2014

बारिश की बूँदें



बारिश की बूँदें
प्रकृति का सौन्दर्य
दुगना कर देती है ,
सबका मन हर्षो उल्लास से
भर देती है ,
प्रेमी प्रेमिकाओं के लिए
तो ये बूंदें मानो
वरदान हो ,
पर यही बूँदें
मेरे मन को शीतल
करने की बजाय
अग्न क्यों पैदा
कर रही है,
हर एक गिरती
बूंद के साथ
मन और भारी क्यू हो रहा है ,
क्यों पंछियों की तरह
मैं भी खुश हो कर
दूर गगन मे
नहीं उड़ पा रही ,
वो भी तो अकेले
ही होते हैं हमेशा  ,  
फिर मैं क्यों नहीं ?
क्यों बरसात मुझे
किसी के साथ और
प्यार की जरूरत महसूस
कराता है ?

"ये आकाश से गिरते बूँदें हैं
 या मेरी आँखों के अश्क़
 ये आकाश प्यार बरसा रहा है
 या मेरा मन अपनी व्यथा "

रेवा

Tuesday, July 22, 2014

मुनिया



छोटी सी मुनिया
दिल मे डॉक्टर बनने
का अरमान लिए ,
बार-बार स्कूल के
दरवाजे जा खड़ी होती ,
डब-डबाई आँखों से
बस बच्चों को
पढ़ते हुए देखती
और लौट आती
पर पढ़ नहीं पाती ,
उस छोटी सी बच्ची
के कन्धों पर
घर सम्भालने की
जिम्मेदारी जो थी ,
भाई का पढ़ना
ज्यादा जरूरी था
बड़े होकर कमाना
तो उसे ही था ,
मुनिया तो लड़की है
घर के काम-काज़
सीखेगी तभी तो
ब्याह होगा उसका ,
पढ़ कर क्या करेगी ?
चूल्हा चौका करना
और बच्चे पलना
धर्म है उसका ,
न जाने कब पूरा होगा
मुनिया जैसी
गांव मे रेह रही
तमाम बच्चियों का सपना  ??

रेवा


Thursday, July 17, 2014

बंधन



लगने लगा था ऐसा कुछ
जैसे सारे बंधन
तोड़ लिए हैं तुमसे ,
अब कोई फर्क नहीं
पड़ता
बात हो या न हो ,
तुम्हारी सारी तकलीफें
अब तुम्हारी
मेरी सारी कठिनाइयाँ मेरी ,
तेरे सारे सपने तेरे अपने
और मेरे ख्वाब मेरे ,
फिर ऐसा क्यों होता है
एक दूसरे की याद
जाने अनजाने
दोनों की आँखें
नम कर जाती है ?
एक दूसरे के ख्वाबों मे
आना
अब भी क्यों जारी है ?
तुम्हारी तकलीफ भरी आवाज़
मुझे अब भी क्यों बेचैन कर जाती है ,
जब सरोकार ही नहीं
एक दूसरे से
फिर ये व्याकुलता क्यों ?

"कुछ बंधन बिना जोड़े
जुड़ जातें हैं
और टूट कर भी
जुड़े रहते हैं "


रेवा

Tuesday, July 15, 2014

महानायक


आज मैं  ऐसे इंसान पर कुछ लिखने की कोशिश कर रही हूँ
जिनपर न जाने कितने लोगों ने कितना कुछ लिखा और कहा
है ,ये मेरी एक छोटी सी अर्ज है की अगर कुछ त्रुटि हो जाये
तो मुझे छमा करें ……

जितना ऊँचा इनका कद है
उससे भी कहीं ज्यादा ऊँची सख्शियत हैं ये ,

अपने निभाए किरदारों मे
ये जितने ज्यादा सख्त हैं
असलियत मे उतने ही नर्म ,

इनका परिवार सिर्फ इनके
बीवी बच्चे ही नहीं
बल्कि पूरा विश्व है ,

किसी सभा की सुंदरता
उसकी सजावट से नहीं
बल्कि इनकी मौजूदगी से होती है ,

हमारे देश को  इनपर अभिमान है
पर इनमे लेश मात्र भी अभिमान नहीं ,

इंसान तो हर एक सेकण्ड मे पैदा होते हैं
पर इनके जैसा महानायक
सदी मे सिर्फ एक बार ,

हाँ ये और कोई नहीं बल्कि
हम सब के गुरुर श्री अमिताभ बच्चन जी हैं /

रेवा 

Saturday, June 28, 2014

दोस्त


सालों तक जिस दोस्त को
ढूंढती रही निग़ाहें
उसका पता यूँ अचानक
चलेगा
ये सोचा न था ,
और पता भी कैसा
यहाँ तक की
मैंने उसकी तस्वीर
भी देखी
पर जाने क्यों
उसकी निगाहों मे
खुद को
तलाशने की कोशिश करने लगी ,
वो तड़प ढूंढने लगी
जिसे मैं महसूस करती थी
आखिर हमारी दोस्ती
थी ही ऐसी ,
पर वहाँ कुछ न पाकर
एक झटका लगा ,
एक टिस सी उठी दिल मे
पर चलो भर्म तो टुटा
क्या समय ,हालात
सच मे बदल देते हैं इंसान को ?

"दर्द इसका नहीं की
 बदल गया ज़माना ,
बस दुआ थी इतनी
मेरे दोस्त
कहीं तुम बदल न जाना "



रेवा


Sunday, June 8, 2014

मिनी की पहचान




बाबुल का आँगन
फिर एक बार 
याद करा गया 
वो बचपन ,
हवाओं मे 
महकता दुलार 
लाड़ और प्यार ,
करा गया 
एहसास की 
मैं वहीँ सबकी लाड़ली 
छोटी अल्हड सी मिनी 
जो फुदकती ,कूदती 
अटखेलियां करती 
नाचती थी आँगन आँगन ,
पर जिम्मेदारियों की
ओढ़नी ऐसी पड़ी   ,
कि मिनी की पहचान ही
बदल दी ……

 "बाबुल के आँगन की नन्ही कली
खिल कर फुल बनी
समय कि धुप उसपर ऐसी पड़ी
कि भूल गयी ,वो भी थी            
कभी एक नन्ही कली "

रेवा 

Wednesday, May 28, 2014

तेरी आवाज़




मैं हर रोज़ नए - नए
मनसूबे बनाती हूँ
तुमसे बात न करने के ,
पर कामयाब हो ही नहीं पाती
कभी दिल कमज़ोर पड़ जाता है
कभी दर्द ज्यादा बढ़ जाता है ,
कभी मौसम मना लेता है
कभी तेरा प्यार याद आ जाता है
कभी तुम्हारी कही गयी बातें ,
कभी वो समझ जिससे हमेशा
मेरी बात मुझसे पहले ही
पहुंच जाती है तुम तक............
शायद
तेरी आवाज़
मेरी आदत
और आदत
ज़िन्दगी बन गयी है अब।


रेवा

Saturday, May 24, 2014

एहसासों कि दुनिया


आज न जाने मन को
क्या हुआ है ?
बस में ही नहीं आ रहा
कमबख्त ,
वो एहसास जिससे
मैं दूर चले जाना चाहती थी ,
आज रह रह कर परेशान
कर रहा है,
ये एहसासों कि दुनिया
कभी - कभी इतनी
जटिल क्यों हो जाती है ?
मैंने तो सोचा था
मेरा खुद पर ज़ोर है
किसी भी छण
कमज़ोर नहीं पडूँगी ,
कुछ भी हो जाये
इन एहसासो को अपने
आस - पास फटकने न दूंगी ,
पर आज
ऐसा महसूस हो रहा है जैसे
हवा के हर झोकें मे
तेरा ही स्पर्श है  ,
साँसों में बस
तेरी ही खुश्बू है,
लगता है
तुझे महसूस
करने ही तो ये
चल रही है ,
कैसे जीयूं तुम बिन ?
यही समझाने आजा.......
मेरी धड़कनों को करार
देने आजा......
मौत तो रोज़ ही आती है
तुम बिन.......
एक बार जीने का भी
एहसास करा जा..............


रेवा 

Monday, May 19, 2014

कठिन डगर


दुःख परेशानी
वैसे तो सबको होती है
पर कभी कभी ये
इतना ज्यादा सर चढ़ कर
बोलती है की
लगता है दुनिया में
मुझसे ज्यादा दुखी
कोई नहीं ,
तब वो सारी
सकारात्मक सोच
रफ़ूचक्कर हो जाती है ,
वो सारी अच्छी बातें
जो हमने कभी पढ़ी थी
और सोचा था  की
मुश्किल घड़ी मे याद
रखेंगे इन्हे
अचानक दिमाग से
गायब हो जातें हैं ,
और हम रह जातें हैं अकेले
खुद से और परेशानियों से
लड़ने के लिए ,

"सफर है कठिन
डगर है कठिन
पर ऐ ज़िन्दगी
मैं भी हूँ कठोर

पार कर ही लुंगी
इन रास्तों को
चाहे तू कितना
भी लगा ले ज़ोर "


रेवा


Monday, May 12, 2014

अस्तित्व

आज क्या लिखूं ?
हर बार यही सोचती हूँ
और फिर
हमेशा तुम्हे हि लिखतीं हुँ
कब तुमने मुझे प्यार किया
कब तिरस्कार ,
कैसे तुमने मेरी कद्र कि
और कैसे मेरी तरफ़ से आँखें हि
मुंद ली ,
तुम्हे हि तो नापती तौलती
रही ,
क्या मेरा अस्तित्व तुम्हारे
बिना कुछ नहीं ?
"मैं" का "हम" मे बदलना
क्या अलग अस्तित्व के
मायने ख़त्म कर देता  है ???

रेवा

Monday, May 5, 2014

दो पाटों के बीच पिसती औरत …


दो पाटों के बीच पिसती औरत.……पति और बच्चे ....... न बच्चों कि उपेछा कर सकती है न पति की
परेशानी तो तब होती है जब एक ऐसा फ़ैसला करना पड़े....... जिसमे एक तरफ़ पति कि सेहत.......
जो अकेले रह कर नहि संभल रहि और दूसरी तरफ़ बच्चों कि खुशियां.......जो जगह नहीं बदलना चाहते....... दोनो को नज़रंदाज़ करना बहुत मुश्किल  , एहमियत तो हमेशा सेहत को हि देनीं पडती है।
पर फिर रोज़ बच्चों के उदास उतरे हुए चेहरे देखकर खुद को कोसे बिन नहि रह पाती है वो माँ ।
चाहे गलती उसकी बिलकुल भि न हो फ़िर भी …………

ये तो एक मन कि अवस्था है , एक स्थिति है ,पर ऐसी कई मानसिक परेशानियों से आये दिन रूबरू
होना पड़ता है.…फिर भी उसे कोइ समझ नहि पाता , न हि वो मान - सम्मान  मिल पाता है
जिसकी वो हक़दार है ,जब अपने हि घर पर उसे वो इज़्जत वो समझ नहि मिलती , तो हम समाज़
से कैसे अपेछा कर सकते हैं।

रेवा



Thursday, May 1, 2014

मेरे सवाल ?


शाम को घोंसलों कि तरफ़ उड़ान
भरने वाले पछियों के जीवन में
नयी सुबह की चहचाहट
जरूर आती है ,
पर घड़ी की टिकटिक
के साथ ,
हर काम करती एक स्त्री के
जीवन में सुबह क्यों नहीं आती ?

घर के हर सामान को
प्यार से सजाने वाली कि
ज़िन्दगी ,
क्यूँ प्यार से खाली रहती है ?

उसके मन के भावों को
क्यों उसके अपने
नहीं पढ़ पाते ?

क्यों जब वो अपने बारे
में सोचती है तो
उसे ऐसा लगता है की
वो मात्र एक यन्त्र है ?

जिसे रुकना तो दूर
बिगड़ने का भी हक़ नहीं ?
और "दिल तो यन्त्र में
होता ही नहीं" !

जब वो सबको खुश रखने की
भरपूर कोशिश करती है तो
क्यों उसे बोला जाता है की ,
"खुद को खुद से खुश रखना सीखो "
फिर घर परिवार पति बच्चों
का क्या मतलब ?
जो उसके सबसे ज्यादा
अपने होते हैं।

"क्या आप दे सकते हैं मेरे इन सवालों के जवाब "?

रेवा 


Sunday, April 27, 2014

अजनबी


ज़िन्दगी के सफर मे
मिल जातें है कई लोग ,
कुछ दिल से जुड़ जाते है
कई बस यूँही कुछ पल
साथ रहते हैं ,
पर ज़िन्दगी के हर मोड़ पर
चाहे कितनी भी
मुसीबतें आये ,

जीवन साथी सदा
साथ निभाते है न ?
लेकिन अगर वोही
अजनबियों जैसा व्यवहार करे तो ?
शायद तब भी
सफर ख़त्म तो नहीं होता
पर कठिन हो जाता है ,
"जैसे एक ही कमरे में
सालों से रह रहे दो लोग
अजनबियों से भी ज्यादा अजनबी "


रेवा

Friday, April 25, 2014

corruption का एक और रूप

काफ़ी सालोँ  बाद कोल्कता में दुबारा रहने का मौका मिला ,पति का यहाँ ट्रान्सफर हुआ था ,खुश भी थी और दुखी भी, यहाँ का एक ऐसा रूप देखा  जिससे मैं काफी आहत हूँ ।
यहाँ हर सुख सुविधा है , अच्छे लोग हैं,अच्छा खान पान ,और लड़कियां भी यहाँ  सुरक्षित हैं ,पर जब यहाँ मैं अपनी बेटी का स्कूल मे एडमिशन करने निकली तब ये रूप देखा , कैसे पैसो से बच्चो के भविष्य के साथ खिलवाड़ होता है।
१ महीने घुमी मैं इस चक्कर मे ,लगने लगा शायद मेरी बेटी ही कुछ पढाई में कमज़ोर है ,पर जब लोगों को अपनी व्यथा बताई ,तब समझ आया बच्चा पढ़ने में फिस्सडी हो या होशियार उससे कोई फर्क नहीं पड़ता ,यहाँ तो बस पैसा फेको तमाशा देखो। लाखों में बच्चा जीरो से हीरो और मनचाहे स्कूल में तालीम हासिल कर सकता है। वार्ना घर पर बैठा कर रखो ,ऐसे स्कूल मे सीट खाली नहीं है ,एंट्रेंस टेस्ट का दावा करते हैं ,पर पैसे देते ही सीट भी खाली और टेस्ट भी क्लियर। स्कूल के चपरासी से लेकर जाने सिस्टम मे कितने लोग जुड़े हैं  ,हम माँ बाप से बात करते हैं कुत्तों की तरह जैसे हमने पता नहीं कितना बड़ा गुनाह कर दिया हो ,पर बच्चों के लिए वो भी सेह लो ,पर ये उनके के भविष्य से खिलवाड़ है ................ये कहाँ तक सही है  ?
शायद इसमे  गलती भी हमारी ही है ,हमने पैसे देने शुरू किये तो लोगों ने अपना चैनल बना  लिया  , पर गलती जहाँ हो, जैसी हो भुगत रहे हैं बच्चे और उनके माता पिता .........पैसे वाले तो पैसे देकर अपना काम निकाल लेते हैं ,भुगतते हैं मिडिल क्लास लोग और उनके बच्चे।
पर इन सबसे ऊपर ये बच्चों की और पूरी सिस्टम की बात है ..................बहुत दुःख और तकलीफ हुई मुझे ये सब देखकर ,ये भी corruption का एक गन्दा रूप है।

रेवा

Sunday, April 20, 2014

नाराज़

नहीं बन पायी मैं
अपनी कहानी वाली मिनी
बहुत कोशिश की ,
अपने आप को
हर कसौटी मे
खरा साबित करने की ,
पर जाने हर बार
कुछ रह ही जाता है ,
पता नहीं मेरे प्रयास 
मे कमी है या मुझमे  ,
या मेरे नज़रिये मे 
पर जो भी है
बहुत अकेली पड़ गयी हूँ ,
क्यूंकि खुद से नाराज़  हूँ आजकल।


रेवा


Friday, April 11, 2014

हाल

हँसी आती है अपने हाल पर
विरह से नाता टुटा
पर वेदना ही वेदना है
हर घड़ी हर चाल पर ,
दोष दूँ तक़दीर को या
रोऊँ समय की मार पर ,
या इंतज़ार करूँ की
कब करवट लेगा वो ऊपर वाला
मेरी गुहार पर ……।

रेवा

Thursday, April 3, 2014

पहचान

देखा इन दिनों चेहरों पे
नक़ाब कई ,
अपने ,पराये, दोस्त ,दुश्मन
इनमे  थे सभी ,
न मांगी थी मैंने
दौलत  और शौहरत कभी ,
बस चाह थी थोड़ी सी
मदद प्यार और सहारे कि
पर वो भी न दे सके
ये सभी ,
दुःख हुआ
बहाये आँसूं भी ,
पर अच्छा है
इस मुश्किल घड़ी ने पहचान करा दी सभी की ./


रेवा

Sunday, March 16, 2014

होली



किसे चाहिये दुनिया का हर रंग
जीवन में बस प्यार को संग
फिर होली खुद ही हो जायेगी रंग - बिरंग
मेरे इन ख्यालों के साथ
होली मनाओ ले कर हाँथो में हाँथ ...........

होली कि आप सभी को ढेरों शुभकामनायें

रेवा

Saturday, March 15, 2014

दूरी



पता नहीं क्यों
पर इन दिनों
बड़ी शिद्दत से
महसूस हो रहा था की
तूने दूरी बना ली है मुझसे ,

फिर लगा शायद !
प्यार पर
मसरूफ़ियत
हावी हो गया है ,
या तुझे मेरी
अब परवाह ही नहीं ,

जो भी था
मैंने अपने आप को
इस परिस्थिति के
मुताबिक
जीना सिखा लिया था ,

पर कल
जब तेरी आवाज़ सुनी
और उस आवाज़ में
वही कशिश
वही प्यार महसूस किया ,

तो ऐसा लगा जैसे
मेरी रूह को
सुकून मिल गया ,
और मन कि सारी कड़वाहट
बह गयी
आंसूओं के रास्ते।

रेवा 

Saturday, March 8, 2014

महिला दिवस




सुबह से आज महिला दिवस कि बधाईं मिल रही है ,
चाहे फेसबुक हो watsaap या gmail ,
एहसास मिश्रित हैं !
इसलिए अपनी बात कहने आ गयी ,

महिला दिवस मनाते हैं हम
पर पुरुष दिवस क्यों नहीं होता
जब हर छेत्र मे पुरुष से समानता
करते हैं ,तो फिर इस छेत्र मे असमानता ?
वैसे देखा जाये तो हर दिन हमारा
ही होता है !
बस ये सोच पर निर्भर करता है ,
अगर हम अपने को पुरुषों
से कमजोर समझेंगे तो
हम वैसा ही महसूस करेंगे ,
ये साबित भी हो चूका है की
हम पुरुषों से ज्यादा सक्ष्म  हैं ,
ज्यादतर महिलायों का शोषण
महिलाएं ही करती हैं
ये भी एक कड़वा सच है ,
हम सबको को आज
ये प्रण लेना चाहिये की
हम महिलायें एक दूसरे के
साथ देंगी हमेशा  ,
चाहे फिर रिश्ता कोई भी हो
"सबसे बड़ा रिश्ता तो यही है की
हम एक ही लिंग के हैं"
और यही रिश्ता सर्वोपरी है।


रेवा

Friday, March 7, 2014

Friend !!





Its time to write something on you my friend!

I always tried to keep distance from you
But you gave me so many reasons to be your friend ,
And I guess I had found a life time friend in you
I cant be your love
but promise to be more than that "a friend "
In every ups and downs I will be at your side
praying for you and encouraging you  ,
I know you will be the same for me............
when I say leave me alone , I mean please don't
sometimes I am harsh ,but I am soft at heart
sometimes I may be unpredictable ,but thats what makes me "me "
sometimes I may sound wiered or behave like that
but that will be situational
what ever I may be,
be always at my side
I guess we will never regret to be friends.....

Rewa


Wednesday, March 5, 2014

मेरा परिवार



जितना प्यार मुझे
अपनी पूरी ज़िन्दगी
मे नहीं मिला ,
उससे कहीं ज्यादा
मुझे इस सृजन की
दुनिया से जुड़ कर मिला ,  
यहाँ मैं किसी कि गुड़िया हूँ
किसी कि बेटी
किसी कि प्यारी छोटी बेहेन
किसी कि सखी ,
तो वहीँ इतने सारे
भाइयों कि बड़ी बेहेन भी ,

सब हर बार मुझे
प्रोत्साहित करते हैं ,
ग़लतियाँ करने पर
प्यार से समझाते हैं ,
ढ़ेर सारा प्यार
और सम्मान देते हैं ,
कभी - कभी अपने इस
परिवार कि आत्मीयता
देख आँखों मे आँसू
आ जातें हैं,
कमबख्त ये आँसू भी न
कोई मौका नहीं छोड़ते ,

इस कविता के माध्यम से
मैं अपने इस परिवार को
तहे दिल धन्यवाद देती हूँ ,
अपना प्यार और आशीर्वाद
ऐसे ही बनाये रखें ,
येही तो मेरे जीवन का आधार हैं।

आभार सहित रेवा


Sunday, March 2, 2014

क्या कहूँ



क्या कहूँ !!
इन दिनों मन कैसा हो रहा है 
चिड़ियाँ के बच्चे जब उड़ना 
सीख जातें है तो 
घोसला छोड़ कर 
चले जाते हैं न ,
आज मेरे बेटे कि 
हॉस्टल जाने कि बारी आयी 
तो मैं इतना कमज़ोर 
क्यों हो रही हूँ ?
सब के बच्चे जाते हैं ,

पर ये मन को समझाने 
के लिए अच्छी सोच है ,
पर एक माँ को समझाने 
के लिए नहीं ,
उसकी ममता कि व्याकुलता 
को शांत करने के लिए नहीं ,

शायद हम बच्चो को बड़ा 
करने में ,इतने 
मशगूल हो जातें हैं की ,
सबकुछ भूल ही जाते हैं 
ये भी कि एक दिन 
वो दूर भी जाएंगे ,
और छोड़ जाएंगे 
बस एक खालीपन। 


रेवा 

Wednesday, February 26, 2014

खतों में प्यार (लघु कथा)







खतों का पुलिंदा देख ……रानू को याद हो आयी वो स्मृतियाँ जब पति  बॉर्डर पर तैनात थे , फ़ोन पर नेटवर्क
भी नहीं पकड़ता था वहाँ , अपनी भावनाएं एक दूसरे तक पहुँचाने का सहारा थे मात्र ये पत्र। जब बॉर्डर पर 
थोड़ी भी टेंशन होती रानू का दिल जोर जोर धड़कने लगता मन आशंकाओं से भर उठता , भविष्य कि चिंता 
सताने लगती ,तब सम्बल होता बस ये पेन और कागज़ , पर मन कि उथल पुथल नहीं लिख पाती थी, लगता था कि वो कितने दूर हैं अपनी चिंता लिखकर नाहक ही उन्हें परेशां कद दूंगी … लिख पाती थी बस उनके साथ बिताये पलों कि यादें..........उनसे दुरी में दुःख का  एहसास , हर पल सताने वाली पीड़ा, उनके दिए प्यार भरे तोहफे से आती उनकी खुशबू और  उन्हें देख कर अपने आंसू … पर याद है मुझे जब यही सब उन्होंने ने अपने ख़त मे लिखा था तो फफक कर रो पड़ी थी मैं ,घंटो आँसू बाहती रही। तब समझ आयी उनकी व्यथा , मेरा ऐसा लिखना उन्हें कितना दुःख देता होगा और वो भी वहाँ जहाँ उनका संबल सिर्फ ये पत्र हैं। तबसे मैंने विरह के वेदना कि जगह प्यार लिखना शुरू कर दिया, और आज जब उन खतों को पड़ती हूँ तो मुझे बहुत ख़ुशी होती है कि मैंने ऐसा किया।  

रेवा 

Saturday, February 22, 2014

एक सजा



समझती हूँ
तेरी उदासी
पढ़ सकती हूँ
तेरी आँखों को ,
पर क्या करूँ
माँ हूँ फिर भी
कई बार तेरे सवालों का
तेरी उदासी का
समाधान नहीं कर पाती ,
समय ही
तुझे तेरे सवालों का
जवाब देगा ये जानती हूँ ,
पर तब तक
तुझे दुखी देखना
मेरे लिए एक सजा
से कम नहीं।


रेवा 

Saturday, February 15, 2014

माँ कि व्यथा


क्या बताऊँ सबको
कि मुझे क्या हुआ है
क्यूँ मैं सूखती जा रही हूँ ,
उस माँ कि व्यथा कैसे दिखाऊँ
जिसका मन जब तब
उस शाम को याद कर
रो पड़ता है ,
जिस शाम उसकी
दस साल कि बच्ची की
किसी वहशी ने
अस्मत लूटने की 
कोशिश कि थी ,
हर बार माँ कि आँखों
के सामने बेटी का वो
रोता हुआ चेहरा
आ जाता है ,
जब उसने कांपते कांपते
सारी  बात बतायी और
कहा था ," माँ सब बंद
कर दो , नहीं तो
वो मुझे मार देगा "
उस दिन शायद वो माँ
एक मौत मर गयी थी ,
हर वक्त उसे यही दुःख
सालता है कि वो
अपनी बच्ची कि रक्षा
न कर सकी ,
समय का पहिया
पीछे घूमता भी तो नहीं
कि वो वापस जा कर
सब ठीक कर दे ,
बस दिल रोता रहता है
और जीवन चक्र
चलता रहता है।

रेवा


Thursday, January 30, 2014

इंतज़ार 2



इंतज़ार कि घड़ियाँ
गिनते - गिनते ,
प्रीत कि ओढ़नी ओढ़े
मन दुल्हन सा हो गया है

मिलन कि आस लिए
बस दरवाज़े पर
टक - टकी लगाये
पहरा देते रहते हैं
मेरे एहसास ,

अश्रु अब पलकों के
सीपों में बंद
मोती हो गयें हैं ,
जो बस पिया के
गले का हार
बनने को आतुर हैं

आह ! ये इंतज़ार भी
कभी गुदगुदाता है
कभी रुलाता है
पर कभी - कभी
जीवन को दोबारा
प्यार से भर देता है !!!

रेवा

Tuesday, January 28, 2014

मन कि भूख


होने को ये एक छोटा सा वाक्या है...............पर मैं
समझ नहीं पा रही हूँ , हंसु या रोऊँ। लोगों कि सोच सही है या मैं गलत ,
किसी ने पूछा मुझसे , कि क्या मैं कवितायेँ लिखती हूँ , मेरे हाँ
कहने पर उन्होंने बोला......... इस से तुम्हे  कितनी आमदनी होती है ?
मैं सकपका गयी .........समझ नहीं आया क्या जवाब दूँ,
उन्हें क्या बताऊ... कि मैं पेट कि भूख मिटने के लिए नहीं  बल्कि
अपने मन कि संतुष्टि अपने मन कि भूख मिटने के लिए लिखती हूँ।

रेवा


Friday, January 24, 2014

दिल कि फितरत




जब दिल रोता है तो
लाख कोशिशों के
बावजूद ,
पलकों के शामियाने
को छोड़
आँसू छलक जातें हैं ,
दिल को कितना भी
समझा लो
पर हर बात उसे
नागवार गुजरती है ,
और वो
अपने एहसासो से
भिगोती रहती है
पलकों को ,
"क्युकी खुद को समझाना
हमारी आदत है ,
पर न समझना
दिल कि फितरत है" ।


रेवा 

Tuesday, January 21, 2014

तड़पते एहसास


जीवन साथी जब दूर हो तो ,
कभी कभी मन को
समझाना आसां लगता है
पर खुद को समझाना
बहुत मुश्किल ,
हम सबको धोखा
दे सकते हैं
पर अपने आप को नहीं ,
दिन तो निकल जाता है
पर शाम होते ही ,
यादों के साये
घेर लेते हैं
आँखे बरबस 
भीग जाती है ,
बाहें आलिंगन को
तरसने लगती है ,
मन, दिल ,आत्मा
सब रुदन करने
लगते हैं ,
उस एक पल ऐसा
महसूस होता है
मानो
सारी दुनिया बेकार है ,
पर फिर भी
जीना पड़ता है ,
तड़पते एहसासों
के साथ।


रेवा 

Thursday, January 16, 2014

कोशिश




बहुत कोशिश की
तुझसे दुरी बनाने की
लेकिन हर कोशिश
नाकाम रही ,
लाख चाहा एक
औपचारिक रिश्ता
कायम करूँ  ,
पर जब भी तुम्हारी आवाज़ सुनी
सारे प्रयास बेमानी
लगने लगे ,
पता नहीं तुम्हारी
सखशियत ऐसी है
या तुम्हारा प्यार ऐसा है ?
शायद जब प्यार करना
अपने वश मे नहीं होता ,
तो दूर जाना भी
मुमकिन नहीं होता।

रेवा


Monday, January 6, 2014

क्या नाम दूँ ऐसे रिश्ते को ???




न कोई शिकवा है ,
न शिकायत
न नफ़रत है,
न मोहब्बत
न आशा है ,
न निराशा
न ख़ामोशी सुकूं देती है ,
न बातें
न आंसु दिल दुखाती हैं ,
न हंसी मन बहलाती है
न मिलन कि आस है ,
न जुदाई का गम
फिर भी जुड़े हैं एक दूजे से हम

क्या नाम दूँ ऐसे रिश्ते को ???

रेवा 

Friday, January 3, 2014

समय

ह्रदय और मन की
ये कैसी है संधि  ,
दोनों ने आपस मे 
कर ली है जुगलबंदी ,
समझ ने भी ऐलान 
कर दी है बंदी ,
आँखों ने ठान लिया है 
देगा उनका साथ ,
एहसासों ने भी 
मिलाया इनसे हाँथ ,
कोशिशे हो रही नाकाम 
लगता नहीं ये काम है आसान ,
मन तो होता रहेगा अधीर 
पर मुझे भी धरना होगा धीर ,
हालात कभी नहीं होते एक से 
हर समय होता है अस्थायी ,
बस यही बात अब 
मन मे आयी। 


रेवा