बचपन से बड़े होने तक
माँ बाप हमारी सारी इच्छायें
हमारे सारे ज़िद
पूरा करते हैं
हमारा ख्याल रखते हैं
हमे काबिल इंसान बनाते हैं ,
और हम क्या करते हैं ?
कुछ नहीं कर पाते ,
शादी के बाद बस
अपना घर ,बच्चे
पति , सास ,ससुर
ननद ,देवर
इन सब मे उलझ कर रह जाते हैं ,
माता पिता को जब हमारी
सबसे ज्यादा जरूरत होती है
हम उनके पास नहीं होते ,
न ही उनकी सेवा कर पाते हैं
न उनका अकेलापन दूर कर पातें हैं ,
तड़प तो बहुत होती है ,
पर अपनी दूसरी ज़िम्मेदारियाँ
आड़े आ जाती हैं ,
बस फ़ोन पर हालचाल पूछ कर
अपनी ज़िम्मेदारी पूरी हो गयी
ऐसा समझ लेते हैं ,
क्या हम स्वार्थी नहीं हैं ?
रेवा
माँ बाप हमारी सारी इच्छायें
हमारे सारे ज़िद
पूरा करते हैं
हमारा ख्याल रखते हैं
हमे काबिल इंसान बनाते हैं ,
और हम क्या करते हैं ?
कुछ नहीं कर पाते ,
शादी के बाद बस
अपना घर ,बच्चे
पति , सास ,ससुर
ननद ,देवर
इन सब मे उलझ कर रह जाते हैं ,
माता पिता को जब हमारी
सबसे ज्यादा जरूरत होती है
हम उनके पास नहीं होते ,
न ही उनकी सेवा कर पाते हैं
न उनका अकेलापन दूर कर पातें हैं ,
तड़प तो बहुत होती है ,
पर अपनी दूसरी ज़िम्मेदारियाँ
आड़े आ जाती हैं ,
बस फ़ोन पर हालचाल पूछ कर
अपनी ज़िम्मेदारी पूरी हो गयी
ऐसा समझ लेते हैं ,
क्या हम स्वार्थी नहीं हैं ?
रेवा
स्वार्थ के बगैर तो जीवन चल ही नहीं सकता!
ReplyDelete--
अच्छी रचना!
क्या हम स्वार्थी नहीं हैं ?
ReplyDeleteहम जिस समाज में रहते हैं वहाँ सारे दायित्व बेटे-बहू की होती है ..। जब बेटी को दान कर दिये तो हक़ कहाँ ? अब समय बदल रहा है , अपने ससुराल के सारे दायित्व के साथ माँ-बाप की भी जिम्मेदारी बेटियाँ उठाने लगी है कानून भी बना है ....।
हम सभी स्वार्थी हैं और बिना स्वार्थ इस दुनिया में कुछ भी संभव नहीं है।
ReplyDeleteस्वार्थ पर मैंने भी कभी कुछ लिखा था समय मिले तो एक नज़र डालिएगा--
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स्वार्थ
सादर
sahi kaha.....jaroor yashwant bhai
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