पता नहीं ऐसा क्या था उसमे
कि खिंची चली गयी मैं ,
पता नहीं कब कैसे
मन मे उतर गया वो ,
ये उसका प्यार था
या कुछ समय का छलावा
नहीं जान पाई ,
अपने पुरे मन से
चाहा था मैंने उसे ,
पर लगता है
ज़माने की तरह
बेवफा है वो भी ,
प्यार किया
प्यार भरी बातें भी की
पर बाद मे उस प्यार को
दोस्ती का जामा पहना दिया ,
कितना आसान होता है न
"दिल को तोड़ कर भी
न तोडना "
रेवा
कि खिंची चली गयी मैं ,
पता नहीं कब कैसे
मन मे उतर गया वो ,
ये उसका प्यार था
या कुछ समय का छलावा
नहीं जान पाई ,
अपने पुरे मन से
चाहा था मैंने उसे ,
पर लगता है
ज़माने की तरह
बेवफा है वो भी ,
प्यार किया
प्यार भरी बातें भी की
पर बाद मे उस प्यार को
दोस्ती का जामा पहना दिया ,
कितना आसान होता है न
"दिल को तोड़ कर भी
न तोडना "
रेवा
हमने तो जिंदगी का रुख ही मोड़ दिया है
ReplyDeleteजाने खुदा अच्छा बुरा हमने क्या किया है
जिसे चाँद तारे तोड़ने हों तोड़ता रहे
हमने तो चाँद देखना भी छोड़ दिया है
इस जिंदगी की राह में जितने बेवफा मिले
उनमे तेरा इक नाम और जोड़ दिया है
ये तो नए जमाने का दस्तूर होता जा रहा है ....।
ReplyDeleteदिल तोड़ने का नया बहाना "दोस्ती "
ReplyDeletelatest postमेरे विचार मेरी अनुभूति: मेरी और उनकी बातें
Behatareen panktiyaan!!!
ReplyDeleteऔर उस से भी अधिक मुश्किल होता हैं अपने मन की बातों को लिखना
ReplyDeleteaap sabka bahut bahut shukriya....
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