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Wednesday, August 29, 2012

मेरे कान्हा

कान्हा तेरे चरणों मे अर्पण है
ये अश्रु के फूल 
क्षमा करना मेरी सब भूल ,
पापिनी  हूँ दुखियारिणी हूँ 
पर हूँ तो  तेरी हि रचना ,
करती हूँ विनती आँखों मे भर नीर 
हरना मेरे ह्रदय की पीर 
चाहे कैसी भी हो तकदीर ,
जब भी टूटी मेरी आस 
तुने ही भरा नया विश्वास 
नव जीवन और उल्लास ,
आज फिर हूँ बहुत निराश 
डर और आशंका से भरी 
है हर  साँस ,
तेरे सिवा कोई नज़र आता नहीं 
दिल का बोझ अब सहा जाता नहीं ,
आंखें मूंदे झोली फैलाइए 
खड़ी हूँ आस लगाये ,
अब देर न कर 
तेरी बेटी तुझे बुलाये ,
या तो तू बुला ले अपने पास 
नहीं तो बना ले अपने                                     
चरणों का दास  !!

रेवा 

पहली बार भगवान की भक्ति पर लिखा है ,मन से आवाज़ आई उसे शब्द दिया है बस 
कुछ भूल हो थो अवश्य बताएं //



Friday, August 24, 2012

कलम से दोस्ती

पहले जब कभी 
थोडा समय मिलता था ,
तो बहुत अकेलापन 
और तन्हाई महसूस होती थी  ,
पर अब 
कलम से दोस्ती हो गयी है ,
ये इतना सुखद बदलाव है 
की क्या कहूँ ,
अब अकेलापन 
मुझे डसता नहीं ,
न ही 
तन्हाई सताती है ,
हर वक़्त मेरी दोस्त 
कलम 
मुझे  अपने पास बुलाती है ,
इसकी वफ़ादारी
की तो मैं कायल हो गयी हूँ ,
दिन हो या रात 
हर वक़्त हर पल  साथ ,
कैसी  भी हो बात 
या कितने भी बिगड़े हो हालात ,
नहीं छुड़ाती अपना हाँथ 
रोते और हँसते भी हैं हम 
साथ साथ ,
ऐ! मेरी दोस्त कलम 
बस यूँही निभाना 
हमारा साथ /


रेवा   

  

Monday, August 20, 2012

बरसात

इतने दिनों के
लम्बे इंतज़ार 
के बाद ,
बरसात की फुहार ने 
धरती की प्यास बुझाई ,
बारिश की बूंदों के साथ 
प्रकृति खिल उठी ,
हर ओर बस हरियाली 
ही हरियाली छा गयी  ,
ऐसा में 
मेरा मन भी 
हर बूंद के साथ 
अंगड़ाई लेने लगा ,
ऐसा लगा मानो 
इन बूंदों 
और ठंडी हवाओं के साथ 
कहीं से तुम आ गए 
और मुझे हौले से 
अपनी बाँहों मे 
भर लिया हो ,
इस ख्याल से  
मेरी सांसें रुक गयी 
और मैं उस पल को 
जीने के लिए 
ज़िन्दगी जीने लगी ..........

रेवा 


Thursday, August 9, 2012

मुझे सहने दो !

तुम कहते हो 
इतना एहसास है 
तुम्हारे अन्दर 
मेरे लिए 
तो जताती   
क्यों नहीं ,
प्यार इतना भरा है 
दिल मे तो 
कभी बताती 
क्यों नहीं ,
आंसू बहाती 
हो चुप चाप 
मेरे लिए 
तो मुझे भिगाती 
क्यों नहीं ,
क्यों सब मन 
मे  दबा 
कर रखती हो ?
क्या बताऊ    
तुम्हे की ,
ये एहसासों 
का तूफान 
तुम्हे उडा 
ले जायेगा ,
प्यार तुम्हे 
पागल कर देगा ,
आंसू तुम्हे 
डूबो देंगे ,
ये मेरे 
अन्दर रहेने दो, 
मुझे अकेले ही 
चलने दो ,
शायद अगले 
जनम मे 
तुम्हे पाऊ  ,
इस जनम 
मुझे सहने दो !

रेवा 






Saturday, August 4, 2012

साँझ की बेला

शाम का सुहाना मौसम ,
बादल साँझ की चादर ओढे 
रात्रि की तरफ बढ़ रहा था /
पक्षी अपने अपने घोसलों की ओर जा रहे थे  
हवा अपने पुरे योवन के साथ 
मदमाती हुई बह रही थी,  
ऐसे मे मैं अकेली बैठी 
इस प्रकृति के पुरे सौंदर्य के साथ भी
खुद को अकेला महसूस कर रही थी ,
पर तभी अचानक हवा के झोके की तरह 
तेरा पैगाम आया ,
उस एक प्यार भरे पैगाम को पा कर 
मेरा मन मयूर नांच उठा ,
अब ये साँझ की बेला तनहा न हो कर 
हमारे प्यार से महकने लगी /


रेवा