ये आंसू भी कमबख्त
अनचाहे मेहमान की तरह
बरस ही जाते हैं ,
जैसे जैसे दिल
अपनी तकलीफों के
बारे मे सोचता है
ये अपना काम करते रहते हैं ,
सोच भी पता नहीं क्यों
आ ही जाती है ,
अरे तकलीफ तो ज़िन्दगी
का हिस्सा है ,
पर नहीं
हमें लगता है की
हमारी तकलीफ सबसे बड़ी है ,
और हम कभी खुद को
कभी भगवान को कोसते हैं
की मैं ही क्यों ?
पर जब अच्छा होता है तो
कभी नहीं बोलते "मैं ही क्यों "?
पर हम इन सबसे
उपर उठ नहीं पाते ,
शायद इसलिए इन्सान
कहलाते हैं/
रेवा
अनचाहे मेहमान की तरह
बरस ही जाते हैं ,
जैसे जैसे दिल
अपनी तकलीफों के
बारे मे सोचता है
ये अपना काम करते रहते हैं ,
सोच भी पता नहीं क्यों
आ ही जाती है ,
अरे तकलीफ तो ज़िन्दगी
का हिस्सा है ,
पर नहीं
हमें लगता है की
हमारी तकलीफ सबसे बड़ी है ,
और हम कभी खुद को
कभी भगवान को कोसते हैं
की मैं ही क्यों ?
पर जब अच्छा होता है तो
कभी नहीं बोलते "मैं ही क्यों "?
पर हम इन सबसे
उपर उठ नहीं पाते ,
शायद इसलिए इन्सान
कहलाते हैं/
रेवा
बहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसादर
shukriya yashoda behen
ReplyDeleteMan is man God is God.
ReplyDeleteइनायत जब खुदा की हो तो बंजर भी चमन होता
खुशियाँ रहती दामन में और जीवन में अमन होता
मर्जी बिन खुदा यारों तो जर्रा भी नहीं हिलता
अगर बो रूठ जाए तो मुयस्सर न कफ़न होता
Madan ji bahut khoob kaha apne
Deleterewa ji ...aisa hi kuch hai hum sabke saath...ye rachna ..zindagi ka aaina hai!
ReplyDeletevah kya khoob andaz hai ,behatareen
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना प्रभावशाली प्रस्तुति
ReplyDeleteParulji, madhu ji , sushmaji shukriya
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