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Monday, September 29, 2014

बेकाबू आँसू



धो लिये आज आंसुओं से
अपने सारे गम........
भर ली अपनी झोली
फिर इन नमकीन
जल की धाराओं से
चाहती नहीं थी
इन्हें न्योता देना
पर क्या करूँ
इन्सान हूँ
देवताओं जैसी फितरत
कहाँ से लाऊँ..........
जब सहनशक्ति
अपनी हदें पार
कर लेती है
तो ये आँसू बेकाबू
हो जातें हैं
जिनकी किस्मत मे
होता है बह कर
बस सूख जाना ...........


रेवा


Monday, September 22, 2014

क्या होती है बरसात ?



क्या होती है बरसात ?
कैसी होती है ?
ये सवाल आज भी
मेरे लिए सवाल है……

सुना है इसकी बूंदें
जब तन को छूती है तो
एक सिहरन सी महसूस होती है
जैसे किसी ने हौले से प्यार
भरा स्पर्श किया हो.......

बाँहें फ़ैलाये जब
इसमे भिंगो तो
ऐसा लगता है जैसे
किसी ने प्यार से
बाँहों मे भर लिया हो......

जब लटों से
हवाएँ अठखेलियाँ करती हैं
तो लगता है जैसे
किसी ने गिले बालों को
अपनी उँगलियों से
सहलाया हो.......

पर ये सब मैं
महसूस नही कर पाती क्यूंकि
आज भी ऐसी प्यार भरी
बरसात का मैं बस इंतज़ार
ही कर रही हूँ ...........

"बादल बरसे
 प्यार फिर भी तरसे
 गीला वन-उपवन
 पर सुखा है तन -मन "

रेवा


Thursday, September 18, 2014

आज भी बचपन याद आता है !



आज भी बचपन याद आता है
मस्ती भरे दिन
अल्हड़ हर पल छीन........
बारिश मे भीगना
कीचड़ मे खेलना
वो कागज़ की नाव बनाना.......
होली मे रंग बिरंगे
गुब्बारे मारना
और छिप जाना.......
आज भी बचपन याद आता है

तड़पता है दिल
भीगती हैं आँखें
याद कर वो दिन .......
पर ये भी सच है
ये जीवन चक्र है,
मगर दिल के एक कोने
मे एक बच्चा अभी
भी रहता है ,
बहार आने को जो मचलता है
पर जब जब वो बहार
आता है
उसे फिर से ये कह कर
धकेल दिया जाता है की
"इस उम्र मे इतना बचपना
 शोभा नहीं देता है"
 पर क्या करें
 आज भी बचपन याद आता है

रेवा



Wednesday, September 10, 2014

क्या वो इंसान कहलाने लायक हैं ?




ये कैसे लोग हैं  ?
माँ के कोख़ मे पल रही
नन्ही कलियों को
मार देते हैं  ,
इससे भी मन नहीं भरता
तो पैदा होते ही उन्हें
कभी अनचाही
कभी नाजायज़
क़रार देते हुए
मंदिर ,नालों, कूड़ेदानों
और न जाने कहाँ -कहाँ
फेक कर चले जातें हैं ,
जैसे बच्ची न हो
कूड़ा हो ......
ऐसे करने वालों को
ये प्रश्न क्यों नहीं सालता की
'क्या वो इंसान कहलाने लायक हैं '?

कई बार ये काम वो उस
माँ से करवाते हैं
जिसने अपनी कोख मे
९ महीने रखा उस बच्ची को ,
जाने कितनी बार उसे
सहलाया , पुचकारा
उसकी धड़कने महसूस की ,
उसके हरकत करने पर
मन ही मन मुस्कायी ,
अपनी खून से सींचा
उस नन्ही परी को  ,
उसके नन्हे नन्हे हाँथ पैरों की
कल्पना की,
उसके साथ जाने कितने
अनगिनत संजोये ,
दिन रात ,हर घड़ी हर पल
उसकी रक्षा की ,
उसे अपनी गोद मे
उठाने के इंतज़ार मे
हर कष्ट हँस कर सहा  ............
उसी माँ से उसकी बच्ची
छीन लेना उफ्फ्फ !
प्रश्न सिर्फ ये नहीं की
क्या वो इंसान कहलाने के लायक हैं ?
ये भी है की....... हम सब इसे रोकने के लिए क्या कर रहे हैं ?

रेवा