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Thursday, January 31, 2019

गृहिणी


मैं एक गृहिणी हूँ 
सुबह के आकाश का रंग
देखना चाहती हूँ
पर नहीं पहचानती
नहीं छू पाती सूरज की
किरण
नहीं सुन पाती
मधुर संगीत
नहीं महसूस कर पाती
वो ताज़ी हवा
नहीं जी पाती सुबह

वो उठते ही दौड़ती है
रसोई में वही है
उसका आकाश
सूरज की बजाय वो
आग का रंग देखती है
संगीत की बजाय
सुनती है आवाज़ें
फरमाइशों की
टिफ़िन और नाश्ते में
परोस देती है
ताज़ी हवा

धो देती है सुकून के पल
कपड़ों के साथ
फिर सूखा देती है अपनी
ख्वाहिशें
और तह लगा कर रख
देती है अपने ख़्वाब

बच्चे बड़े हो जातें हैं
वो जवान से बूढ़ी हो
जाती है
पर ये क्रम
अनवरत चलता
रहता है जैसे
सुबह संग सूरज

#रेवा

Tuesday, January 22, 2019

तुम



तुम्हें ये महज़ बातें लगती हैं 
मुझे एहसास
तुम्हें ये बरसात नज़र आती है
मुझे मिट्टी की खुश्बू
तुम्हें सिर्फ़ आँखें नज़र आती हैं
मुझे उनमें घुलते जज़्बात
तुम्हें एक ख़याल छू कर चला जाता है
मुझे रेशमी याद
तुम्हें ज़रूरत समझ आती है
मुझे इश्क़
तुम्हें लॉजिक चाहिए
मुझे प्यार और ख्याल
तुम्हें सपनों में सपने समझ आते हैं
मुझे हक़ीकत
तुम्हें देह समझ आती है
मुझे रूह
तुम्हें सिर्फ तुम समझ आते हो
और मुझे भी बस तुम

#रेवा

Sunday, January 20, 2019

ग़रीब


चलो बादलों की
जेब से
सूरज चुरा लायें
रख दे फिर उसे
उन गरीबों की 
बस्ती में
ताकि कोई भी
ठंड से न हो
उन्ही बादलों के हवाले
रात फिर ठण्डी
हवाओं को
भर दें
बादलों के
जैकेट में
और ओस की बूंदों को
चाँद की टोपी
में छुपा दें
ताकि ठंड में भी
सो सके फुटपाथों पर
सुकून की नींद

Tuesday, January 1, 2019

लम्हा


वो लम्हा वो पल
कुछ उसमें मैं रह गयी हूँ
कुछ वो मुझ में समा गया है

उस पल को जितना
जीती हूँ वो मुझे
उतनी ही ऊर्जा से
भर देता है

चाहे वो पल क्षणिक ही था
पर धीरे धीरे दिल की
तहों में घुल  कर
जीने का बहाना बन
गया है

मैं जानती हूँ
जीवन में अब कभी
वो पल दोबारा नहीं आएगा
मैं चाहती भी नहीं

क्योंकि मैं उस लम्हे से
मिले एहसास को उसके 
संपूर्ण प्रगाड़ता के साथ 
अपने जीवन की
बहुत प्यारी याद
बना कर रखना
चाहती हूँ

और जब जी चाहे 
उस लम्हे को 
यादों के रेशमी धागों 
से निकाल कर जीना 
चाहती हूँ !!!!!


#रेवा
#एहसास