Followers

Wednesday, October 31, 2018

अमृता


अमृता 
जानती हो तुम्हारे नाम के
साथ अमर जुड़ा हुआ है
फिर कैसे जा सकती हो कहीं

तुम कहीं गयीं नहीं हो
यहीं तो हो
हम सब के बीच
अपनी कहानियों
और नज़्मों में 
हर इश्क करने वाले
के दिल में
और हर पल धड़कती रहती हो
इमरोज़ की धड़कन में 

मैं जानती हूँ और मानती भी हूँ की
तुम्हें बस प्यार से आवाज़
देने की जरूरत होती है
तुम आ जाती हो पास
बातें करती हो
और हमेशा मेरे हाथ
दे जाती हो एक
अदद नज़्म की सौगात

तुम्हें पढ़ना, सुनना
रुलाता है गुदगुदाता है
और दिल प्यार और
सम्मान से भर जाता है

अमृता तुम कहीं
नहीं गयी हो यहीं हो
हम सबके बीच
हमारे दिल में


#रेवा
#अमृता

Monday, October 29, 2018

दोहरी मानसिकता


ऐ पुरुष तुम कितनी 
दोहरी मानसिकता लिए
जीते हो

तुम जब छोटे बॉक्सर पहन
कर घूमते हो तो क्या वो छोटे
नहीं होते ?
कभी ये सोचा है
तुम्हें इतने छोटे कपड़ों में
देख कर लड़कियाँ भी कुछ
बोल सकती हैं
उनका भी तो मन है
डोल सकता है न
आखिर वो भी तो इन्सान
है तुम्हारी तरह

जब तुम कोई बड़े गले का
Tशर्ट पहनते हो
तो वो तो उसके अंदर
ज़ेरॉक्स नज़रों से
झांकने की कोशिश नहीं
करती

तुम जब खुले बदन
बाहर आते हो
अपनी सिक्स पैक
ऐब दिखा इतराते हो
तो क्या तुम पर
फब्तियां कसती हैं लड़कियाँ ??

पर अगर लड़कियाँ
कम कपड़ों में घूमे, निकले
तो तुम उसका जीना
मुहाल कर देते हो
क्यों वो इंसान नहीं क्या ??

एक बात बताओ
क्या तुम किसी और
ग्रह से आये हो और
वो किसी और ग्रह से है ??
तुम्हारा मन, मन है जो
बार बार संभल नहीं पाता
और उसका तो कुछ भी नहीं

और ये तुम्हारा मन आखिर
है कैसा
आठ महीने की बच्ची से लेकर
साठ साल की उम्रदराज़ पर
भी आ जाता है और तुम
बलात्कार जैसे घृणित कार्य
करने से भी नहीं चूकते
सोचो गर तुम्हारे साथ ऐसा
कुछ हो तो
उस दर्द से गुजरना पड़े तो

ऐ पुरुष तुम सच में कितनी
दोहरी मानसिकता लिए
जीते हो

#रेवा
#लड़कियां

Friday, October 26, 2018

कोरा कागज़




एक से रिश्ता कोरे कागज़ सा
एक से कोरे कागज़
में खींचती लकीरों सा

एक के कोरे कागज़ पर वो जो चाहे
लिख तो सकती थी
पर वो पढ़ कर भी
पढ़ा नहीं जाता था
यानि सदा कोरा रह जाता

दूजे कोरे कागज़ पर
लकीरों में रंग भरा था
जिसने मुलाकात करवाई
जीवन के अनछुए पहलुओं से
ज़ज्बातों से
ऐसे जज़्बात जिसमे बस
वो ही थी और कहीं कोई नहीं

एक उनका आसमान था
जिसे पाना चाहती थी
सब कुछ छोड़ कर
पर पाना नामुमकिन

दूजा उनके घर की छत
जिसे पाने का जुनून नहीं था
क्योंकि वो सदा ही उनके पास था

इन दो कागज़ों के अलग अलग
पहलुओं से सजी थी
इश्क की दुनिया
जो अमर है अमर रहेगी

#रेवा
#अमृता के बाद की नज़्म

Thursday, October 25, 2018

तू लाजवाब है ऐ ज़िन्दगी



तू समझने की चीज़ थोड़े है
तू तो जीने की चीज़ है
तू सवाल नहीं बदलती
बस रोज़ नए जवाब थमा
देती है
तू निष्ठुर बिल्कुल भी नहीं
हर बार नया दिन देती है जीने
के लिए
एक दिन गर आंसुओं के सैलाब से
तर करती है तो दूजे दिन
मुस्कुराहट का लिबास भी पहनाती है
कभी विरहन की तरह मिलती है
तो कभी प्रेयसी की तरह
तू जैसी है जो भी देती है
तू लाजवाब है ऐ ज़िन्दगी !!

#रेवा
#ज़िन्दगी 

Thursday, October 18, 2018

मुझे तुमसे मोहब्बत है


कभी कोई 
खुश्बू सांसों
में समा जाए
तो उसे हम नहीं कहते
मुझे तुमसे मोहब्बत है

कभी ठंडी पुरवाई
बदन को छू जाए तो
उसे भी हम नहीं कहते
मुझे तुमसे मोहब्बत है

वो रंग जो मन को
भा जाते हैं
उनसे भी नहीं कहते हम
सुनो मुझे तुमसे मोहब्बत है

प्रकृति की मनोहारी छटा
जो दिल पर छप जाए
उसे भी हम नहीं कहते
मुझे तुमसे मोहब्बत है

वैसे ही हो तुम 
मेरी दुनिया
ये सब तुममे ही समाहित है
तुम्हें भी मैं नहीं कहता
मुझे तुमसे मोहब्बत है

#रेवा
#इमरोज़

Tuesday, October 16, 2018

बीज गाथा

मैं बीज गाथा लिखना चाहती हूँ 
उस नन्ही सी बीज का जो
बढ़ना चाहती है
अपनी कोख़ में फल फूल
को पालना चाहती है
पर बेदर्दी से कुचल दिया
जाता है उसे

मैं अन्न की गाथा लिखना चाहती हूँ
जो सींची जाती थी 
किसान के पसीने से 
पर अब उस किसान
को कुचल दिया जाता है
और खूनी अन्न को लाश बना
बेचा जाता है

मैं उन पौध की गाथा लिखना चाहती हूँ
जो उगते हैं हर जगह कुछ जंगली
होते हैं और कुछ सामान्य
पर उन सब को ज़हर से 
भर आतंकवादी बना दिया जाता है

इसलिए मैं प्रेम लिखती हूँ
क्योंकि नफ़रत से भरी इस
दुनिया में प्रेम ही है जो 
हम सबको बचा सकता है


#रेवा 

Monday, October 15, 2018

हमसफ़र



गर तुम चाहो
मेरे करीब आना
मुझे समझना
मुझे पढ़ना
तो ज़रिये
मिल ही जायेंगे
पर तब
जब तुम चाहो 

तुम गर खुद में
ही सिमटे रहे
तो पढ़ना तो दूर
मुझे समझना
भी मुमकिन नहीं है

कभी देखा है
मेरे चेहरे को गौर से
मेरी आँखों की
भाषा क्या समझ
आती है तुम्हें
नहीं न

असल में
जीवन की आपा धापी में
हम जीवन साथी का साथ
उसके प्यार, उसकी कद्र
इन सब बातों को
नज़रंदाज़ कर देते हैं

ये सारी चीज़ें
टेकन फ़ॉर ग्रांटेड की
सूची में जो आते हैं
और जब दोनों में से एक
नहीं रहता / रहती
तो हाथ मलने के अलावा
कुछ बचता नहीं....

#रेवा 
#हमसफ़र 

Friday, October 12, 2018

जाने क्यों


जाने क्यों 
इतनी बड़ी हूँ मैं
पर जब बात तुम्हारी
आती है तो बच्चों सी
हो जाती हूँ

जाने क्यों
तुम अगर मेरी बात
ठीक से न सुनो तो
चिढ़ जाती हूँ
फ़ोन न लो तो गुस्सा 
हो जाती हूँ
और अगर दो बार ऐसा
करो तब तो भयंकर गुस्सा
तुम्हें फोन पर
तीन बार
ब्लॉक ब्लॉक ब्लॉक
लिख कर जाने कैसी
संतुष्टि मिलती है मुझे

जाने क्यों
कभी कभी तुमसे
अपनी हर बात साझा
करना चाहती हूँ
क्या कर रही हूँ  ?
कौन सा गीत ज्यादा
सुन रहीं हूँ ?
कौन सी कविता पर
काम कर रही हूँ  ?
क्या पढ़ना चाहती हूँ ?
यहां तक की कौन से
रंग का कुर्ता पहन रखा है

जाने क्यों
फिर अगले ही पल
ख़ुद को चपत लगा कर
कहती हूँ पागल..
पर मन तो फिर भी
मन है न
ऐसा चाहता है
तो क्या करूँ बोलो ??

Thursday, October 11, 2018

अंतर का दीया (२)



ये जो मेरी काया है न 
यही तो मेरी कहानी है
जब इस काया के पन्ने
पलटती हूँ और
पढ़ती हूँ अपने एहसास
अपने ख़याल
और अपने सवाल
सारे
समझ नहीं आती हैं
कई बातें
ये दुख सुख की सौगातें 
तब मेरे अंतर का दीया
करता है रोशन मेरी राहें

कभी करती हूं सवाल इससे
कैसे दिप दिप करते हो
तुम सदा ?
तो जवाब मिलता है
मैं तो कुछ भी नहीं हूँ
वो तुम ही तो हो
जलाती रहती हो जो
अपने विश्वास से इस
दीये की लौ
मेरे अंतर का दीया
करता है रोशन मेरी राहें

#रेवा 
#अंतर का दीया
#अमृता जी की कविता से प्रेरित 

Wednesday, October 10, 2018

अधूरापन


एक अधूरापन सा 
सदा रहता है दरम्यान.....
चुभती हैं वो सारी बातें 
जो मैंने चाहा पर 
तुम समझ नहीं पाए .....

बस जरुरत की
हर चीज़ देते गए
ये न सोचा की
दिल जरुरत से नहीं
प्यार से भरता है ....


मकां तो दिया
रहने को
पर दिल खाली कर दिया ......


ऐसा नहीं की इन बातों से
मुझे अब फर्क नहीं पड़ता
पर कब तक सिसकती
सुलगती रहूँ
इसलिए
दफ़न कर दिया है इनको
मन की चारदीवारी में
और ऊपर से मुस्कान
बिछा दी है
ताकि कोई
झांक कर पता न कर पाए की
मैं अधूरी हूँ या पूरी.....


रेवा 

Monday, October 8, 2018

ये धरती


ये धरती 
चीख चीख कर
कहती है
मत काटो गला
पेड़ पौधों का
उनको बढ़ने दो
उनके हरे पत्तों को
धूप में चमकने और
बरसात में नहाने दो

अपने कंक्रीट में
थोड़ी सी जगह
इन्हें भी दो
ताकि ये अपनी
जवानी और बुढ़ापा
जी सके
ये ही तुम्हें
साँस लेने लायक
रखते हैं
तुम्हारा पेट भरते हैं

अपने दिमाग का
इस तरह इस्तेमाल
न करो की एक दिन
प्यास हो पर पानी नहीं
भूख हो पर अनाज नहीं
फेफड़े हों पर ऑक्सिजन नहीं
अपने बच्चों के लिए
कुछ छोड़ कर जाना हो तो
प्रकृति का उपहार दे कर जाओ

#रेवा
#प्रकृति

Friday, October 5, 2018

सदियों की रिहाई


हम भी मिले थे अचानक 
दूसरे प्रेमियों की तरह ही
प्यार तो नहीं था तब
दोस्ती भी नहीं थी
पर कुछ तो था... 

धीरे-धीरे समय के साथ 
एहसास हुआ की
ये पक्का दोस्ती तो नहीं
पर जो है उसे अपने
पास फटकने देने 
से भी गुरेज़ है ...

लेकिन अगर अपने ही बस में
हो हर एहसास तो फिर
ग़म ही न हो ....

तुम भी वहीं महसूस
कर रहे थे जो मैं कर रही थी
ये जानती थी
पर हम आँख मिचौली
खेलने लगे एक दुजे के साथ 

लेकिन आखिर धप्पा 
हो ही गया और तब
तुमने मुझे सदा प्यार करने की
पर दूर चले जाने की कसम
ले ली 

जैसे कह रहे हो
"सदियों का वादा तो किया है
और सदियों की रिहाई भी दे रहा हूँ  "


#रेवा 
#वादा 

Wednesday, October 3, 2018

अजीब सपना


आज एक अजीब
सपना देखा ,
देखा की मैं एक
बहुत छोटी जगह
बंद हो गयी हूँ

सब मुझे ढूंढ
रहे हैं
जबकि
मैं उन्ही के बीच हूँ
उन्हें बार बार
आवाज़ दे रही हूँ
दरवाज़ा खट खटा
रही हूँ

पर कोई सुन ही
नहीं रहा ,
इतने में वहां
एक अजनबी आया
उसने देखा और
दरवाज़ा खोल दिया

जानते हो इस सपने
का संकेत ,
दरवाज़े के पीछे बन्द
मेरा दिल था और
दरवाज़ा खोलने वाले
अजनबी थे "तुम "


#रेवा
#तुम 

Monday, October 1, 2018

वो घर कभी मेरा भी था

जहाँ मैं घर घर खेली
गुड्डे गुड़ियों की बनी सहेली
वो घर  मेरा भी था

जहाँ मैं रूठी ,इठलाई
और ज़िद्द में हर बात
मनवाई
वो घर मेरा भी था

जहां मेरे बचपन के थे संगी साथी
भईया बनता था घोड़ा हाँथी
खिलखिलाहटों की तब होती थी भरमार
वो घर मेरा भी था

लगा के बिंदिया पहन के माँ की साड़ी
करती थी खूब उधमबाज़ी
वो घर मेरा भी था

जब होती थी बीमार दुआओं की
होती थी भरमार
माँ की गोद और उनका स्पर्श रहता था
दिन भर मेरे साथ
वो घर मेरा भी था

गुस्से में अगर रहती थी भूखी
पापा की डांट से तब सबकी
सबकी जान थी सूखती
वो घर मेरा भी था

कागज़ की नाव , कीचड़ भरे पाँव
मिट्टी के घरौंदे ,खेल खिलौने
वो भईया के शिकायतों के दाँव
सब छूटे
वो घर मेरा भी था

अब वहाँ हर चीज़ है अजनबी
चुपपी ही लगती है भली
महमान कहलाते हैं जहाँ हम
मायके कह कर उसे बुलाते हैं
अब हम

#रेवा
#घर