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Sunday, January 2, 2022

खर्च



मैं जब रूठूं तो
मना लेना मुझे
मैं जब जीवन से
हार मानने लगूं
तो जिंदगी पर
फिर से भरोसा
दिला देना मुझे
मैं जब अपने से
परेशान हो कर
सबसे दूर हो जाऊं
तो पास बुला लेना मुझे
मैं जब तकलीफों से
त्रस्त हो आंसुओं में
भीगने लगूं
तो अपने साथ होने का
एहसास दिला देना मुझे

इतनी सारी फरमाइशों के साथ
एक गुजारिश और है तुम से
इस मिनी को जब भी
संभालने की बारी आए
तो बस कुछ प्यार और दुलार
से भरे लफ्ज़
खर्च कर देना उस पर।।
#रेवा
#मिनी

Friday, December 24, 2021

माघ की मेहँदी








यूँ तो हमारे यहाँ
प्रथा है कि
सुहागनें कोई भी
व्रत उपवास करने से पहले
हाथों में मेहँदी सजाती है,
मुझे ये समझ नहीं आता था
हर बार माँ से
एक ही सवाल
ऐसा क्यों ?
नहीं लगाया तो क्या होगा ?
पर अब जब
अपनी बारी आई और
हाथों में
तेरे नाम की मेहँदी लगायी
तो समझ आयी
माँ की सारी अनकही बात,
मेहँदी ने मेरे हाथों में
जो रंग चढ़ाया वो
बिलकुल तेरे प्यार की तरह था,
कहीं रंग कम
कहीं ज्यादा
कहीं मिला जुला
कहीं एकदम फीका
पर पूरी हथेली
और उँगली
जैसे खिल गयी हो
मेहंदी के रंग से
और जब तुमने 
बढ़कर मेहंदी 
लगे हाथों को चूमा 
तो हाथों के साथ 
मेरे गाल भी सुरमई 
हो गए !!!!

Thursday, January 7, 2021

प्रेम



प्रेम ये शब्द 
राग की तरह मन के 
तारों को झंकृत करता है 
ध्यान मग्न योगी 
जैसे ईश्वर के दर्शन पा कर 
भाव विभोर हो जाता है 
वैसा ही है प्रेम 

मेरी समझ में 
प्रेम मानसिक भी होता है और 
दैहिक भी
मानसिक प्रेम हमसफर के साथ 
हो ये ज़रूरी नहीं 
पर दैहिक प्रेम जीवन साथी के  
साथ होता ही है 
ये प्रेम छुअन से उपजता है   
पर तन मन धन और जीवन का साथ देता है 
प्यार इस साथ में भी भरपूर होता है 

पर मानसिक प्रेम में दैहिक की जगह 
ही नहीं होती
इसे समझना और पाना मुश्किल है 
इस प्रेम में 
सारे एहसास अनछुए होते हैं
ये प्रेम ऐसा होता है जैसे 
धड़कन की ध्वनि 
जैसे बांसुरी को होठों में 
लगा कर निकाली गई धुन 
जो जीवन भर के लिए 
मदहोश कर फिर 
विलीन हो जाती है 
ब्रह्माण्ड में कहीं ....

#रेवा
 


  

Thursday, October 22, 2020

ताउम्र




मैं तो नहीं रहने वाली ताउम्र यहां 
आप 
क्या आप रहने वाले हैं
हमेशा के लिए यहां
नहीं ना
तो फिर इतनी चिंता किस
बात की
अरे खुल कर जियो
मौज में रहो

चार पैसे कम कमा लोगे
तो कुछ न बिगड़ेगा
कौन सा साथ लेकर
जाना है
जितनी जरूरत है उतना
कमाओ
मशहूर न हुए न सही
ऊपर कोई नहीं पूछने वाला

लेकिन सोचो
इन सब की वजह से
अगर ज़िन्दगी न जिया
तो वो न मिलने की दोबारा
ये बस इसी बार है
तो जी लो खुल कर
प्यार करो दिल भर कर
दोस्त बनाओ जी भर कर
मस्ती करो
और चैन से रहो
क्योंकि तुम हमेशा
नहीं रहने वाले यहां


#रेवा


Friday, August 28, 2020

ओहदा



मुझे मलाल है की 
मैं बुलंदियों को छू ना पाई
पर ये तस्सली भी है
कि जितना कुछ
हासिल किया अपने दम
पर हासिल किया
कभी किसी का सीढ़ी
की तरह इस्तेमाल नहीं किया

मैं जानती हूँ 
मैं जहाँ हूँ वहां पहुँचना
दूसरों की लिए   
चुटकियों की बात होगी 

पर मैं संतुष्ट हूँ ख़ुद से
और यही संतुष्टि हर किसी के
बस की बात नहीं

आपका ओहदा आपकी बुलंदी
आपको बहुत मुबारक
मेरी संतुष्टि मुझे प्यारी है 
हाँ एक बात और कहना चाहती हूँ
मुझसे जब भी मिलें
अपने ओहदे की पैरहन
उतार के मिले
क्योंकि मैं मुलाकात
इन्सान से करना पसंद करती हूँ 
ओहदे से नहीं 

#रेवा 

Tuesday, June 16, 2020

limelight


ये लाइट ऐसी वैसी नहीं है
बहुत चमकदार है
जो भी इसके पास आता है
वो चमक जाता है
सूरज की रौशनी
की तरह
और अपनी एक पहचान
बना लेता है

इस लाइट के और भी
कई गुण हैं
ये धीरे धीरे
ज़मीन से उठा कर
आसमान पर बैठा देता है
इंसान खुद को भगवान तो नहीं
पर ऊँचे सिंहासन पर
बैठा हुआ महसूस करता है

कभी जो नज़रे पड़े उन पर तो
उनका चमकता पर
इतराता हुआ चेहरा
साफ दिख जाता है
लेकिन हो भी क्यों न
मेहनत भी तो की है
यहां तक पहुंचने में....

अब ज़मीन से ऊपर उठ गए हैं
तो ज़ाहिर है नीचे की चीज़ें
मुश्किल से दिखाई देंगी
और इस वजह से
इनका सारी ज़मीनी हकीकतों से
नाता टूट जाता है

अब गर आसमान में रहना है
तो इतनी सी कीमत तो
देनी ही पड़ेगी !!

दुःख की एक बात और है
ये समय के साथ अकेले हो जाते हैं
दोस्तों और सच से दूर,
मुखौटा लगाना इनकी
जरूरत बन जाती है

पर मुखौटा लगाते लगाते उसी
में रहने की आदत हो जाती है
और फिर लोग भी उन्हे वैसे ही
मिलने लगते हैं,

और बाहर की लाइट
पाने की चाह में
उनके अंदर की रौशनी कम होने
लगती है

ये कहना गलत न होगा की 
ये हमेशा मुस्कुराहट सजा कर
दुःख की पहरन पहन कर
जीते रहते हैं
और कभी कभी थक कर
खुद से आज़ाद
हो जाते हैं!!!


#रेवा

Sunday, June 14, 2020

दोपहर





बहुत दिन बाद
आज दोपहर में 
कुछ सुकून के लम्हों से
मुलाकात हुई,
खुद में सिमटी
अधलेटी सी पड़ी थी मैं,
बाहर बरसात अपने
पूरे जोश में 
बरस रही थी,

मेरे पास ही फ़ोन पर
गुलज़ार साहब के
लिखे गाने चल रहे थे,

मेरा मन न जाने क्यों
अजीब सा हो रहा था,
ऐसा जैसे मैं कहीं
डूब रही हूँ

ग़म तो कुछ भी नहीं
फिर भी जाने क्यों ????
समझ ही नहीं आया ....
अनायास ही एक बूँद
मेरे गालों को गीला
कर गयी

और मैं तेरी याद में 
बुरी तरह भीग गयी,
पर जानते हो....
खुद को सुखाने का
बिलकुल मन था,
लग रहा था
बरसात यूँ ही होती रहे
और मैं यूं ही भीगती रहूँ !!!

रेवा