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Wednesday, May 30, 2018

मैं इश्क हूँ मैं अमृता हूँ


मैं इश्क हूँ
मैं अमृता हूँ

मैं उस साहिर के
होठों से लगी
उसके उंगलियों के बीच
अधजली सी सिगरेट हूँ....

वो जो धुआं है न
जिसका फैलाव दिख रहा है?
वो इस बावरे दिल
और उस दायरे को भर रहा है

धीरे-धीरे,रफ़्ता-रफ़्ता
मुझ में ही घुलता जा रहा है

उस ऐश ट्रे में जो चंद राख
और एक टुकड़ा सिगरेट का
छूटा पड़ा है न ?

उसी लत के सहारे
ये सफ़र ज़िन्दगी का
मुकम्मल कर रही हूँ मैं

बस तुम भी इसी तरह
मुझमें सुलगते रहना

सिगरेट की टूटन मैं पीती रहूँ
और तुझे ही जीती रहूँ।

रेवा
#अमृता के बाद की  नज़्म

Friday, May 25, 2018

बुद्ध होना आसान है


बुद्ध होना आसान है 

एक रात चुपके से
घर द्वार स्त्री बच्चे को
छोड़ कर
सत्य की खोज में
निकल जाना
आसान है 

क्योंकि कोई  उंगली
उठती नहीं आप पर
न ही ज्यादा सवाल
पूछे जाते हैं
कोई लांछन नहीं लगाता
शब्दों के बाणों  से
तन मन छलनी नहीं किया जाता

लेकिन कभी सोचा है
उनकी जगह एक स्त्री होती तो
वो गर चुपके से निकल जाती
एक रात
घर द्वार पति नवजात शिशु
को छोड़ कर
सत्य की खोज में
क्या कोई विश्वास करता 
उसकी इस बात पर
यातनाएँ तोहमतें लगायी जाती
उसके स्त्रीत्व को 
लाँछित किया जाता 

पूरे का पूरा समाज
खड़ा हो जाता
उसके विरुद्ध 
ये होती उसकी सत्य की खोज

बुद्ध होना आसान है
पर स्त्री होना कठिन !!

रेवा 

Thursday, May 24, 2018

मोहब्बत का सफ़र

आज तुम आये मेरे पास
और कहा की
जो तुमने लिखा है न
"तुझे मेरी आरज़ू तो है
पर मोहब्बत नहीं "

ऐसा नहीं है
मैंने कभी मोहब्बत के
बारे में सोचा ही नहीं
य कह लो समय नहीं मिला
तुम मेरी चाहत को ही
मोहब्बत समझ लो न 

असल में चाहत और
मोहब्बत में मैं अंतर
नहीं कर पाता हूँ
और अगर कर भी लूं
तो मुझे प्यार जताना
या  दिखाना नहीं आता
पर प्यार मैं तुमसे ही करता हूं
बस इतना कह सकता हूँ 

मैंने कहा, जानते हो 
तुमने आज बस इतनी सी
बात कह कर
ता उम्र अपना साथ
मेरे नाम कर दिया
यही तो चाहा था मैंने
कभी कुछ तो बोलो
इस बारे में मुझसे
चलो अब मुझे 
कोई शिकायत नहीं
तुमसे
तुम मैं और मोहब्बत
अब साथ साथ सफ़र करेंगे

रेवा 

#मोहब्बत 

Monday, May 21, 2018

प्रेम अप्रेम




कई बार
प्रेम अप्रेम हो जाता है
और जब ऐसा होता है न
दिल तड़प उठता है
अचानक आये
इस बदलाव से स्तब्ध ,
समझ नहीं पाता की
चूक कहाँ हो गयी

कोशिश बहुत करता है दिल
वापस पाने को
वो तमाम एहसास
पर मन कहता है
अब जाने भी दो
जब एहसास प्रेम स्वतः
ही आते हैं दबे पांव
तो कोशिशें कितनी भी कर लो
वो कड़वाहट कम
कर सकती है
दरारें भर सकती है
पर प्रेम नहीं करवा सकती

चलो आज से तुम्हें
तुम्हारा अप्रेम मुबारक
और मुझे  मेरा प्रेम

रेवा


Monday, May 7, 2018

नापाक रिश्ते

जब ब्याह हो जाता है 
अपना दिल जान
न्योछावर कर देती है स्त्री,
अपनी हर जिम्मेदारी निभाती
रहती है 
पर जब सालों बाद भी 
उसे वो प्यार वो सम्मान नहीं मिलता 
जिसकी वो हक़दार है और 
जो सबसे कीमती है उसकी नज़र में
तो उदास हो जाती है अंदर से ,
दिल में एक खाली कोना 
बन जाता है 
और उदास हँसी उसकी नीयती,
कभी तो बगावत कर देती है
कभी नसीब मान समझौता भी 
करती है ,

पर जब कोई उसे ऐसा मिलता है
जो भीड़ में थाम लेता है उसे
बिन कहे सुने ही, सब समझ लेता है
उसकी बातें, उसकी ख्वाहिशें 
उसका सम्मान करता है 
अपनापन देता है
तो अनायास ही वो 
उसकी तरफ झुकने लगती है
उससे अपनी हर बात
साझा करने लगती है,

लेकिन जीवन में आदमी 
का अर्थ है
बाप भाई पति या बेटा
फिर इस रिश्ते को 
किस आसन पर बैठाये ??
दोस्त या सखा 

लेकिन नहीं बचपन से तो यही 
सीखा है
मर्द दोस्त नहीं हो सकता 
और इसलिए वो हर पल 
इस अपराध बोध के साथ जीती है की
वो अपने पति और परिवार 
के साथ न्याय नहीं कर रही, 
जबकि वो अपने हर रिश्ते की 
सीमाओं से वाकिफ है

यहीं से शुरू होते हैं सवाल
जरूरी है क्या की वो इसे कोई नाम दे?
क्या बिना नाम कोई 
रिश्ता अपने मायने खो देता है,
और वो औरत है दूसरा मर्द 
इसलिए क्या रिश्ता नापाक 
हो जाता है ?
ऐसे और भी कई सवाल हैं 
क्या जवाब है हम में से किसी के पास ????
शायद नहीं 

पर मैं अपनी बात कहना चाहूँगी
मेरा ये मानना है की 
रिश्ते कभी नापाक नहीं होते 
नापाक होती है सोच। 

रेवा