प्रेम ये शब्द
राग की तरह मन के
तारों को झंकृत करता है
ध्यान मग्न योगी
जैसे ईश्वर के दर्शन पा कर
भाव विभोर हो जाता है
वैसा ही है प्रेम
मेरी समझ में
प्रेम मानसिक भी होता है और
दैहिक भी
मानसिक प्रेम हमसफर के साथ
हो ये ज़रूरी नहीं
पर दैहिक प्रेम जीवन साथी के
साथ होता ही है
ये प्रेम छुअन से उपजता है
पर तन मन धन और जीवन का साथ देता है
प्यार इस साथ में भी भरपूर होता है
पर मानसिक प्रेम में दैहिक की जगह
ही नहीं होती
इसे समझना और पाना मुश्किल है
इस प्रेम में
सारे एहसास अनछुए होते हैं
ये प्रेम ऐसा होता है जैसे
धड़कन की ध्वनि
जैसे बांसुरी को होठों में
लगा कर निकाली गई धुन
जो जीवन भर के लिए
मदहोश कर फिर
विलीन हो जाती है
ब्रह्माण्ड में कहीं ....
#रेवा