कुछ प्रश्न हैं जो
मन को बार बार
परेशां करते हैं ......
कागज़ कलम उठाती हूँ
लिखती भी हूँ
पर दूसरे ही पल
मिटा देती हूँ .....
लगता है जो लिखा है
सीधे सरल शब्दों मे
वो कविता
कहलाने लायक नहीं .....
सुना है
कविता जटिल शब्दों का
मायाजाल है
कई अर्थ छुपे शब्दों
से ही ये बुने जा सकते हैं ......
तभी वो कविता की
श्रेणी मे आते हैं.....
नहीं तो मात्र
भावनाओं का
ताना बाना
बन कर रह जाते हैं ........
तो चलिए सहाब
यही सही
हम जटिल शब्दों के
मायाजाल से परे
अपने ताने बाने को ही
कविता समझ
खुश हो लेते हैं !!!!
रेवा
मन का अंतर्द्वंद कितने खूबसूरत तरीके से बयां किया है...कितना कुछ है इन लफ़्ज़ों में ...बहुत खूबसूरत रचना :)
ReplyDeleteshukriya sanjay
Deleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "एक मच्छर का एक्सक्लूजिव इंटरव्यू“ , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteshukriya
Deleteअति सुंदर...बड़ी सुंदरता और सहजता से शब्दों का ताना बाना बुना है आपने...सार्थक शब्द सृजन।
ReplyDeleteshukriya kamlesh ji
Deleteखुश रहिये...पुरष्कृत होने और नामचीन साहित्यिक पत्रिका में छपने का मोह न हो तो यही असली कविता है.
ReplyDeleteshukriya devendr pandey ji.....
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (18-09-2016) को "मा फलेषु कदाचन्" (चर्चा अंक-2469) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
abhar mayank ji
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 19 सितम्बर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteshukriya yashoda behen
Deleteसरल शब्दों में आपने जटिल कविता का अर्थ समझा दिया है
ReplyDeleteshukriya
Delete