औरत
नाम है ऐसे जीव का
जो हमेशा पिसती रहती है
दो पाटों मे
कभी ससुराल तो
कभी मायके के नाम पर
कभी पति तो कभी
बच्चों के नाम पर .....
उसके मन की बात कभी
कोई नहीं सुनता
क्योंकि वो खुद की
कहाँ सुनती है ??
एक घर जन्म का
एक घर कर्म का
पर न वो जन्म
वालों की हो पाती है
न कर्म वालों की
ता उम्र दोनों के लिए
परायी बन
गुज़ार देती है
तमाम रिश्तों के बीच
परायी स्त्रियों को
सलाम मेरी इस
लेखनी द्वारा
न कर्म वालों की
ता उम्र दोनों के लिए
परायी बन
गुज़ार देती है
तमाम रिश्तों के बीच
परायी स्त्रियों को
सलाम मेरी इस
लेखनी द्वारा
और अंत में कहना चाहूँगी
"बेटी हूँ बहू हूँ
बीवी हूँ माँ हूँ
पर सबसे पहले
हाड़ मांस की इन्सान हूँ
रेवा
"बेटी हूँ बहू हूँ
बीवी हूँ माँ हूँ
पर सबसे पहले
हाड़ मांस की इन्सान हूँ
रेवा