ओ मेरे गोपाल
तुझे पा कर
हो गयी मैं निहाल ,
हर सुबह करवाता
तू मुझसे कितनी मनुहार
कभी गुस्से मे
गुमा देता बाँसुरिया अपनी
कभी कानों के कुण्डल पर
खड़े हो जाते सवाल ,
कभी मुँह फुला
बन जाते हो ज़िद्दी
औ कभी अपने नैनों
मे भर लेते हो प्यार ,
पर तू कितना भी
कर ले जतन
मैं फिर भी बनी रहूंगी
तेरी
ओ मेरे मोहन ,
अब सुन ले मेरी भी एक बात
बस जा इस दिल मे
बाँसुरिया के साथ !!
रेवा