ओ मेरे गोपाल
तुझे पा कर
हो गयी मैं निहाल ,
हर सुबह करवाता
तू मुझसे कितनी मनुहार
कभी गुस्से मे
गुमा देता बाँसुरिया अपनी
कभी कानों के कुण्डल पर
खड़े हो जाते सवाल ,
कभी मुँह फुला
बन जाते हो ज़िद्दी
औ कभी अपने नैनों
मे भर लेते हो प्यार ,
पर तू कितना भी
कर ले जतन
मैं फिर भी बनी रहूंगी
तेरी
ओ मेरे मोहन ,
अब सुन ले मेरी भी एक बात
बस जा इस दिल मे
बाँसुरिया के साथ !!
रेवा
सुन्दर भक्तिपूर्ण रचना
ReplyDeleteshukriya onkar ji
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteshukriya kamlesh ji
Deleteबहुत दिनों बाद आना हुआ ब्लॉग पर प्रणाम स्वीकार करें
ReplyDeletekhush raho sanjay
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (26-06-2016) को "लो अच्छे दिन आ गए" (चर्चा अंक-2385) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
abhar mayank ji
Deleteshukriya yashoda behen
ReplyDeleteमीरा के से भाव लिये है यह कविता।
ReplyDeleteshukriya asha ji
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