यूँ तो हमारे यहाँ
प्रथा है कि
सुहागनें कोई भी
व्रत उपवास करने से पहले
हाथों में मेहँदी सजाती है,
मुझे ये समझ नहीं आता था
हर बार माँ से
एक ही सवाल
ऐसा क्यों ?
नहीं लगाया तो क्या होगा ?
प्रथा है कि
सुहागनें कोई भी
व्रत उपवास करने से पहले
हाथों में मेहँदी सजाती है,
मुझे ये समझ नहीं आता था
हर बार माँ से
एक ही सवाल
ऐसा क्यों ?
नहीं लगाया तो क्या होगा ?
पर अब जब
अपनी बारी आई और
हाथों में
तेरे नाम की मेहँदी लगायी
तो समझ आयी
माँ की सारी अनकही बात,
अपनी बारी आई और
हाथों में
तेरे नाम की मेहँदी लगायी
तो समझ आयी
माँ की सारी अनकही बात,
मेहँदी ने मेरे हाथों में
जो रंग चढ़ाया वो
बिलकुल तेरे प्यार की तरह था,
कहीं रंग कम
कहीं ज्यादा
कहीं मिला जुला
कहीं एकदम फीका
पर पूरी हथेली
और उँगली
जैसे खिल गयी हो
मेहंदी के रंग से
और जब तुमने
जो रंग चढ़ाया वो
बिलकुल तेरे प्यार की तरह था,
कहीं रंग कम
कहीं ज्यादा
कहीं मिला जुला
कहीं एकदम फीका
पर पूरी हथेली
और उँगली
जैसे खिल गयी हो
मेहंदी के रंग से
और जब तुमने
बढ़कर मेहंदी
लगे हाथों को चूमा
तो हाथों के साथ
मेरे गाल भी सुरमई
हो गए !!!!
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(२५-१२ -२०२१) को
'रिश्तों के बन्धन'(चर्चा अंक -४२८९) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत शुक्रिया अनीता जी
Deleteवाह ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर एहसास लिए आपकी रचना ...
आभार दिगम्बर जी
Deleteसुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया
Deleteबहुत ही सुंदर भावों को बयां करती खूबसूरत रचना! 😍
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteवाह!!!
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर मनभावन सृजन।
बहुत शुक्रिया
Deleteप्रीत की रचती हथेली ने मेंहदी के रंगों का भेद स्वयं समझा दीया ।
ReplyDeleteसुंदर भाव ।
बहुत शुक्रिया
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteवाह बहुत खूब।
ReplyDeleteNew post- मगर...
बहुत शुक्रिया
Deleteबहुत खूबसूरत रचना
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया
Deleteबेहद खूबसूरत रचना।
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया
ReplyDelete