सालों तक जिस दोस्त को
ढूंढती रही निग़ाहें
उसका पता यूँ अचानक
चलेगा
ये सोचा न था ,
और पता भी कैसा
यहाँ तक की
मैंने उसकी तस्वीर
भी देखी
पर जाने क्यों
उसकी निगाहों मे
खुद को
तलाशने की कोशिश करने लगी ,
वो तड़प ढूंढने लगी
जिसे मैं महसूस करती थी
आखिर हमारी दोस्ती
थी ही ऐसी ,
पर वहाँ कुछ न पाकर
एक झटका लगा ,
एक टिस सी उठी दिल मे
पर चलो भर्म तो टुटा
क्या समय ,हालात
सच मे बदल देते हैं इंसान को ?
"दर्द इसका नहीं की
बदल गया ज़माना ,
बस दुआ थी इतनी
मेरे दोस्त
कहीं तुम बदल न जाना "
रेवा
कुछ तो मजबूरियां रहीं होंगी...
ReplyDeleteकोमल, सुंदर, भावपूर्ण प्रस्तुति ! बहुत बढ़िया !
ReplyDeleteवैसे तो वह आपकी दोस्त है तो आपके पास जरूर आयेगी। वरना वह दोस्त नही थी।
ReplyDeleteshayad sahi kaha apne asha ji...shukriya
Deleteji shukriya
ReplyDeleteदोस्त से अपना कोई नहीं, बशर्ते वो बदले नहीं...
ReplyDeleteकभी कभी किसी रचना के भाव अपने भावों जैसे लगते हैं.... अपनी सी कविता...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ढंग से अपने मन के भावों को रचना में ढाल दिया है आपने ...............
ReplyDeleteAap sabka bahut bahut shukriya
Deleteमित्रता दिवस की शुभकामनायें!
ReplyDeleteभावमय करते शब्दों का संगम ...
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