मैं जानती हूँ जो
खूबसूरती ढूंढती हैं
तुम सब की नज़रें
वो नहीं मिलती मुझ मे.....
पर क्या इस से तुम्हे
मेरी अवहेलना करने का
हक़ मिल जाता है ?
या तो खुले आम कह दो
या मुझे आज़ाद कर दो
ऐसे रिश्तों से .......
नहीं सेह सकती मैं और
तिरस्कार उस बात के
लिए जिसमे मेरा कोई हाथ नहीं
ये भगवान की देंन है
किसी को ज्यादा किसी को कम
मैं जानती हूँ मेरा मन खुबसुरत है
मैं प्यार और इज़्ज़त करती हूँ सबकी
तो क्यों सहुँ मैं ये तिरस्कार ????
रेवा
man ki sundarta ke aage sabhi kuchh goun hai .....sundar rachna ..!
ReplyDeleteshukriya Upii di
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ReplyDeleteवो जो मन की सुंदरता नहीं जानते है
ReplyDeleteबेचारे खुद को भी कहाँ पहचानते है
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ReplyDeleteअति सुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुंदर.
ReplyDeleteअति सुन्दर !
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ReplyDeleteshukriya
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार 03 सितम्बर 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteshukriya yashoda behen
ReplyDeleteउत्कृष्ट प्रस्तुति
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ReplyDeletepublish ebook with ISBN, send manuscript