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Monday, August 31, 2015

तिरस्कार




मैं जानती हूँ जो 
खूबसूरती ढूंढती हैं 
तुम सब की नज़रें 
वो नहीं मिलती मुझ मे.....

पर क्या इस से तुम्हे 
मेरी अवहेलना करने का
हक़ मिल जाता है ?


या तो खुले आम कह दो
या मुझे आज़ाद कर दो

ऐसे रिश्तों से ....... 

नहीं सेह सकती मैं और
तिरस्कार उस बात के
लिए जिसमे मेरा कोई हाथ नहीं


ये भगवान की देंन है
किसी को ज्यादा किसी को कम

मैं जानती हूँ मेरा मन खुबसुरत है 
मैं प्यार और इज़्ज़त करती हूँ सबकी 
तो क्यों सहुँ मैं ये तिरस्कार ????


रेवा 

16 comments:

  1. man ki sundarta ke aage sabhi kuchh goun hai .....sundar rachna ..!

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  3. वो जो मन की सुंदरता नहीं जानते है
    बेचारे खुद को भी कहाँ पहचानते है

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  8. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार 03 सितम्बर 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  9. उत्कृष्ट प्रस्तुति

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