आज पुरानी डायरी मे बेशुमार प्यार पढ़ा ……
बीते लम्हों मे भरा एतबार पढ़ा
हँसी और आंसुओं का सैलाब पढ़ा
आज पुरानी डायरी मे बेशुमार प्यार पढ़ा ……
खुद के लिए तुम्हारी फ़िक्र तुम्हारा ख्याल पढ़ा
भुखी दुपहर को तुम्हारा इंतज़ार पढ़ा
आज पुरानी डायरी मे बेशुमार प्यार पढ़ा ……
सिंदूरी शामों को कॉफ़ी का साथ पढ़ा
बेक़रार रातों को तुम्हारा एहसास पढ़ा
आज पुरानी डायरी मे बेशुमार प्यार पढ़ा ……
झूठे वादों का अल्फ़ाज़ पढ़ा
टूटती सांसों से यादों का कलमा पढ़ा
आज पुरानी डायरी मे बेशुमार प्यार पढ़ा ……
रेवा
Waaaaaaaaaaaaaaaaah
ReplyDeleteshukriya sarik khan ji
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (28-11-2015) को "ये धरा राम का धाम है" (चर्चा-अंक 2174) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
abhar mayank ji
Deleteबहुत खूबसूरत कविता रेवा। बहुत समय बाद तुम्हारी रचना पढ़ी मैंने।और बेहतर लिखने लगी हो। बहुत शुभकामनाये।
ReplyDeletebahut bahut shukriya vasu di
Deleteबहुत खूबसूरत कविता रेवा। बहुत समय बाद तुम्हारी रचना पढ़ी मैंने।और बेहतर लिखने लगी हो। बहुत शुभकामनाये।
ReplyDeleteबहुत सुंदर .
ReplyDeleteनई पोस्ट : इक ख्याल दिल में समाया है
डायरी पढ़ ली खुद को पढ़ लिया,अपना अतीत पढ़ लिया,खुद को मूल्यांकित कर लिया ,नातों व रिश्तों को फिर से देखने का मौका मिलगया , बहुत ही सुन्दर भावों की अभिव्यक्ति रेवाजी
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर कविता। सुंदर पोस्ट।
ReplyDeleteshukriya onkar ji
ReplyDeletebehad khoobsurat..Rewa ji
ReplyDeleteवाह...क्या बात है ! भावपूर्ण.....
ReplyDeleteसुन्दर शब्द रचना
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