जब जब अकेली होती हूँ
जी भर कर रोती हूँ ,
कैसे बताऊ मन की व्यथा ?
रोज़ टूटती हूँ
फिर उठ खुद को जोडती हूँ ,
उन्हें सहारा और ताक़त
देने के लिए मजबूत
बन जाती हूँ ,
पर उनके व्यव्हार से
फिर टूट जाती हूँ ,
भगवान ने ऐसी फितरत
ही बनायीं है इंसान की ,
जब वो कमज़ोर होता है
तो उसे प्यार नज़र आता है ,
पर वही जब ठीक होता है
तो सब भूल जाता है ,
ये सोचे बिना की ,
जिसने अपना
निरछल प्यार बरसाया
वो तब भी वहीँ था
और अब भी वहीँ है /
रेवा