चलो ,एक बार फिर
वहीँ चलते हैं ,
समुन्दर के किनारे
गीली रेत पर ,
जहाँ घंटो बैठ कर
हम दोनों ने नाम लिखा था ,
आती जाती
उन लहरों के साथ
कितनी कसमें खायी थी ,
ठंडी हवाओं के साथ
कितने महकते पल बिताये थे ,
वो रेत अभी भी
वैसे ही गीली है ,
वो लहरें ,वो हवाएँ
सब वैसे ही हैं
पर क्या हम
वैसे रह पाए ??????
रेवा