चलो ,एक बार फिर
वहीँ चलते हैं ,
समुन्दर के किनारे
गीली रेत पर ,
जहाँ घंटो बैठ कर
हम दोनों ने नाम लिखा था ,
आती जाती
उन लहरों के साथ
कितनी कसमें खायी थी ,
ठंडी हवाओं के साथ
कितने महकते पल बिताये थे ,
वो रेत अभी भी
वैसे ही गीली है ,
वो लहरें ,वो हवाएँ
सब वैसे ही हैं
पर क्या हम
वैसे रह पाए ??????
रेवा
वो रेत अभी भी
ReplyDeleteवैसे ही गीली है ,
वो लहरें ,वो हवाएँ
सब वैसे ही हैं
पर क्या हम
वैसे रह पाए ??????
बहुत ही प्यारी और भावो को संजोये रचना.....
Aah! Samay aur ham,dono badal jate hain!
ReplyDeletesushma 'आहुति' has left a new comment on your post "वैसे रह पाए ?":
ReplyDeleteवो रेत अभी भी
वैसे ही गीली है ,
वो लहरें ,वो हवाएँ
सब वैसे ही हैं
पर क्या हम
वैसे रह पाए ??????
बहुत ही प्यारी और भावो को संजोये रचना.....
दिल की भावनाओं को स्पर्श करती बेहद सुन्दर प्रस्तुति !!
ReplyDeleteबहुत मार्मिक! नवसंवत्सर २०६९ की हार्दिक शुभकामनाएँ|
ReplyDeleteबहुत प्यारी कविता
ReplyDeleteaap sabka bahut bahut shukriya
ReplyDeletesaral shabdon mein ek achhi bhaav-purn kavita..
ReplyDeleteabhishek ji shukriya
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रेवा जी...
ReplyDeleteकुछ नहीं बदलता...बस हम ही बदल जाते हैं...
shukriya apka.....
ReplyDeletevery nice
ReplyDeleteshukriya tezwani ji........
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