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Friday, April 13, 2012

क्या इस रिश्ते को नाम देना जरूरी है

कभी कभी सोचती हूँ 
क्या रिश्ता है मेरा तुम्हारा ?
दोस्ती का या प्यार का ?
दोस्ती ऐसी जैसी 
कृष्ण सुदामा की थी ,
या प्यार ऐसा जैसा 
मीरा ने कृष्ण से किया था /
या कोई और रिश्ता ?
क्या हर रिश्ते को नाम देना जरूरी है ?
इतना ही काफी नहीं की
मन मिल गए ,
जब मुझे तुम्हारी जरूरत होती है 
तो हमेशा तुम मेरे पास होते हो ,
समझते हो मुझे ,
समझाते हो मुझे ,
न कुछ गलत करने देते हो 
न होने देते हो ,
और जब तुम्हे मेरी जरूरत होती है 
तो मै तुम्हारे पास ,
जरूरत न भी हो तो 
हम एक दुसरे के साथ ,
बहुत कुछ बाँट लेते हैं ,
हंस लेते है , रो लेते हैं /
क्या इतना काफी नहीं ,
क्या इस रिश्ते को नाम देना जरूरी है ???

रेवा 


12 comments:

  1. kuchh rishton ko naam ke bandhan mein naa baandhna hi achchha hota hai.....

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  2. कोमल भावों की प्रभावी अभिव्यक्ति ।
    सुंदर पंक्तियाँ रची हैं....

    "इतना ही काफी नहीं की
    मन मिल गए......"

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  3. और जब तुम्हे मेरी जरूरत होती है
    तो मै तुम्हारे पास ,
    जरूरत न भी हो तो
    हम एक दुसरे के साथ ,
    बहुत कुछ बाँट लेते हैं ,
    हंस लेते है , रो लेते हैं /
    क्या इतना काफी नहीं ,
    क्या इस रिश्ते को नाम देना जरूरी है ???speechless ........bahut umda prastuti.....bahut bahut sunder bhav.badhai

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  4. जिन रिश्तों के नाम नहीं होते वो स्थाई होते हैं क्योंकि अपेक्षा के बदले कुछ पाने की आकांक्षा नहीं होती बस प्रेम कि चाहत होती है. सुन्दर रचना, बधाई.

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  5. नाम देना तो ज़रूरी नहीं ॥पर समाज के नियमों की खातीर सोचना ज़रूर पड़ता है

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  6. रेवा जी
    नमस्कार !!
    .....जिन रिश्तों के नाम नहीं होते वो स्थाई होते हैं सुन्दर रचना !!!

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  7. दीदी बहुत ही अच्छी तरह से अपने अपने मन के भाव व्यक्त किये है
    और बात रही रिस्तो की तो अपने सही कहा है बहुत रिश्ते अच्छे होते है जिनको नाम नहीं आयाम दिया जाता है वो भी अपने जीवित मन से

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