खतों का पुलिंदा देख ……रानू को याद हो आयी वो स्मृतियाँ जब पति बॉर्डर पर तैनात थे , फ़ोन पर नेटवर्क
भी नहीं पकड़ता था वहाँ , अपनी भावनाएं एक दूसरे तक पहुँचाने का सहारा थे मात्र ये पत्र। जब बॉर्डर पर
थोड़ी भी टेंशन होती रानू का दिल जोर जोर धड़कने लगता मन आशंकाओं से भर उठता , भविष्य कि चिंता
सताने लगती ,तब सम्बल होता बस ये पेन और कागज़ , पर मन कि उथल पुथल नहीं लिख पाती थी, लगता था कि वो कितने दूर हैं अपनी चिंता लिखकर नाहक ही उन्हें परेशां कद दूंगी … लिख पाती थी बस उनके साथ बिताये पलों कि यादें..........उनसे दुरी में दुःख का एहसास , हर पल सताने वाली पीड़ा, उनके दिए प्यार भरे तोहफे से आती उनकी खुशबू और उन्हें देख कर अपने आंसू … पर याद है मुझे जब यही सब उन्होंने ने अपने ख़त मे लिखा था तो फफक कर रो पड़ी थी मैं ,घंटो आँसू बाहती रही। तब समझ आयी उनकी व्यथा , मेरा ऐसा लिखना उन्हें कितना दुःख देता होगा और वो भी वहाँ जहाँ उनका संबल सिर्फ ये पत्र हैं। तबसे मैंने विरह के वेदना कि जगह प्यार लिखना शुरू कर दिया, और आज जब उन खतों को पड़ती हूँ तो मुझे बहुत ख़ुशी होती है कि मैंने ऐसा किया।
रेवा