सालों तक जिस दोस्त को
ढूंढती रही निग़ाहें
उसका पता यूँ अचानक
चलेगा
ये सोचा न था ,
और पता भी कैसा
यहाँ तक की
मैंने उसकी तस्वीर
भी देखी
पर जाने क्यों
उसकी निगाहों मे
खुद को
तलाशने की कोशिश करने लगी ,
वो तड़प ढूंढने लगी
जिसे मैं महसूस करती थी
आखिर हमारी दोस्ती
थी ही ऐसी ,
पर वहाँ कुछ न पाकर
एक झटका लगा ,
एक टिस सी उठी दिल मे
पर चलो भर्म तो टुटा
क्या समय ,हालात
सच मे बदल देते हैं इंसान को ?
"दर्द इसका नहीं की
बदल गया ज़माना ,
बस दुआ थी इतनी
मेरे दोस्त
कहीं तुम बदल न जाना "
रेवा