विश्वाश नोचा गया ,
ये नोच खसोट
करने वाला गिद्ध
और कोई नहीं
बल्कि प्यार नामक
शब्द का उपयोग
करने वाला इंसान है ,
हँसी ! आती है
प्यार का नगाड़ा
बड़े जोर से बजाते है
पर उनकी नज़र
रहती है सिर्फ
स्त्री की देह मे ,
"माटी से बना देह
मिल जाएगा माटी मे
उसे इतना मत नोचो की
अपनी ही देह से घृणा हो जाये"।
रेवा
कुछ होते हैं जो प्रेम के व्योपारी होते हैं ... हर चीज व्यावसायिक नज़र से देखते हैं ...
ReplyDeleteबेहतरीन रचना ...
सच को दिखाया है इस रचना ने । शशक्त भाव ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर । जब कोई रचना सामजिक परिवेश के ताने बाने से निकलती है तो वो पूर्ण होती है ।
आप की रचना पूर्ण है ।
Shukriya shiv raj ji
Deleteभावनात्मक रचना।। ऐसी स्थिति के हम कहीं न कहीं जिम्मेदार ज़रूर है !!
ReplyDeleteह्रदय को कचोटती बहुत ही मार्मिक रचना :)
हार्दिक मंगलकामनाओं के आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (08-04-2015) को "सहमा हुआ समाज" { चर्चा - 1941 } पर भी होगी!
ReplyDelete--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Abhar mayank ji
Deleteइंसानी भेष में गिद्ध बहुत है आज....सटीक मार्मिक रचना
ReplyDeletewaah rewa ji behtareen Rachna ...
ReplyDeleteshukriya harash ji
Deletebahut hi mrmik sabdo ka nichod thanks
ReplyDeleteShukriya padam ji
ReplyDeleteसटीक प्रस्तुति
ReplyDeleteshukriya onkar ji
DeleteRishab ji shukriya. ..jarur
ReplyDeleteरेवा जी,
ReplyDeleteआज कल के नौजवान प्रेम का अर्थ ही भूल गये हैं, दिल छु जाने वाली रचना बहुत अच्छी keep it up,
थैंक्स
Ji shukriya
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