आज मन मे एक सवाल ने दस्तक दिया
क्या है मेरी पहचान ?
रसोई मे अच्छा खाना बनाना
और फिर तारीफ सुन खुश हो जाना ,
या मेरा व्यवस्थित घर
जिसे कभी अव्यवस्थित
रखने की गुंजाइश नहीं ,
या बच्चों की परवरिश
जो अब बड़े हो गए हैं
और अपनी दुनिया मे मस्त
क्या है मेरी पहचान ?
पति का घर लौटने का इंतज़ार
और उनका थका चेहरा जो
बिन बात किये
खा कर सो जाते है ,
या बच्चों की फटकार
उनके कमरे और पर्सनल
लाइफ से बेदखली
क्या है मेरी पहचान ?
ससुराल मे मेरे उठाये गए
हर कदम पर प्रश्न
या घर की बचत पर
उठते सवाल
क्या है मेरी पहचान ?
मेरे मन का अंतर्नाद
या घर का वो कोना
जहाँ बैठ मैं करती हूँ
रात दिन खुद से
अनगिनत युद्ध
क्या है मेरी पहचान ??
रेवा
what a beautiful post
ReplyDeletevery nice
हर नारी, जो रात दिन इन सवालों में घिरी आपकी ही तरह अपनी पहचान ढूँढ रही है, आपकी मुखापेक्षी है ! जब आपको इन सवालों के जवाब मिल जाएँ तो कृपया एक पोस्ट में उन्हें भी ज़रूर डाल दीजियेगा ! शायद कई नारियों को अपनी खोई हुई पहचान मिल जाए ! बहुत सुन्दर रचना !
ReplyDeletesadhana ji shukriya.....par pata nahi kab milengay jawab
Deleteनारी मन में घुटते अनेक प्रश्न जिनका कोई सटीक उत्तर नहीं...दिल को छूती बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति...
ReplyDeleteShukriya kailash ji
Deleteकुछ प्रश्नों का मनवांछित जवाब न मिलना कई प्रश्नों की जिज्ञासा खड़ी कर देता हैं,हालांकि बहुत महीन फर्क हैं प्रश्न और जिज्ञासा में पर हल मिलना नवचेतना के आगमन जैसा हो
ReplyDeleteकुछ प्रश्नों का मनवांछित जवाब न मिलना कई प्रश्नों की जिज्ञासा खड़ी कर देता हैं,हालांकि बहुत महीन फर्क हैं प्रश्न और जिज्ञासा में पर हल मिलना नवचेतना के आगमन जैसा हो
ReplyDeleteबराबर अधिकार .....नारी मुक्ति ....शब्द बड़े अच्छे हैं मगर कदम फीके ....मगर हो रहा है ....कोई अधिकार देगा नहीं ख़ुद नारी को लेने पड़ेगे ...बहुत सुंदर रचना पर बधाई
ReplyDeleteमनोभावों को प्रश्नो के रूप में बड़ी सहजता और सुंदरता के साथ उकेर दिया आपने... रेवा जी
ReplyDeleteयहीं नहीं ... सवाल तो अनगिनित हैं
ReplyDeletehttp://savanxxx.blogspot.in
सच है न जाने कितने सवाल अनुत्तरित है । सुन्दर कविता
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार 01 अक्टूबर 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteShukriya yashoda behen
Deleteबहुत सुंदर भावनायें
ReplyDeleteaap sabka bahut bahut shukriya
ReplyDeleteइसी पहचान की तलाश में एक सफल गृहणी,एक सफल पत्नी ,,एक सफल माँ अपना सब कुछ झोंक देती है और सोचती है मुझे क्या मिला ?????
ReplyDeleteइसका उत्तर व्यवस्थित घर देता है,पति का चेहरा देता है,सफलताओं की श्रेणी में खड़े बच्चे देते हैं,सास का स्नेह,ससुर की तारीफ़ देते हैं---
बस यही तो सार्थक और पीढीगत पहचान है --
वैसे आपकी कविता में मन का अनकहा सच है जो पुरुष को सचेत करता है
बेहद सुंदर कविता
सादर
ज्योति खरे जी बहुत बहुत शुक्रिया
ReplyDeleteक्या है मेरी पहचान..., बेहद सुंदर रचना।
ReplyDeletejamshed ji blog par swagat hai apka.....shukriya
ReplyDelete