लिखती हूँ मिटाती हूँ
जाने क्यों
कविता नहीं बुन पाती हूँ
कविता नहीं बुन पाती हूँ
कभी दोहे की तलाश मे
अटक जाती हूँ
अटक जाती हूँ
कभी शब्द टंग जातें है दिल के
तारों पर
तो कभी एहसास
दगा दे जातें हैं
कभी लगता है छन्द मे बंध गए
मेरे सवाल
तो कभी
छंद मुक्त कविताओं मे
छंद मुक्त कविताओं मे
निकलता है
दिल का गुब्बार ,
तो कभी हो जाता
मुझे क्षणिकाओं से प्यार ,
दिल का गुब्बार ,
तो कभी हो जाता
मुझे क्षणिकाओं से प्यार ,
पर चाहे जो भी लेखन कला
ये शब्दों का जाल
ये शब्दों का जाल
दिल मे जगाता रहता है
कलम और कागज़ से प्यार
रेवा
कलम और कागज़ से प्यार
रेवा
bahut badiya
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति है
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति है
ReplyDeleteशंद्प्न के जाल से निकल भाव का लेखन ही रचना है ...
ReplyDeletewonderful.................!!!!!
ReplyDeleteक्षणिकाओ से प्यार आपका बना रहें|
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति है बधाई
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति है बधाई
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