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Monday, May 16, 2016

कोमल हूँ तो क्या कमज़ोर नहीं हूँ




नारी हूँ कोमल हूँ
तो क्या
कमज़ोर नहीं हूँ
रुक्मणि ,राधा ,मीरा हूँ
काम पड़े पर
दुर्गा काली सी
सशक्त भी हूँ मैं

धरा हूँ धूरी हूँ
जूही की नन्ही कली हूँ
पर समय आ पड़े तो
बिजली भी हूँ मैं

अपने अहम से
कई बार तोड़ना
चाहते हैं ये पुरुष

पर कभी गुस्से
कभी प्यार से
पार कर ही लेती हूँ
हर युद्ध.....

जीवन के
तमाम रिश्ते निभाती
कभी उनसे पीड़ा मिले तो
उन्हें ताकत बनती
कर्मबद्ध हूँ मैं 
नारी हूँ कोमल हूँ
तो क्या
कमज़ोर नहीं हूँ 
रेवा 

Sunday, May 1, 2016

रिश्ते


कर लो चाहे
जितनी बड़ी बड़ी
बातें.......
लिख लो चाहे
जो मन को अच्छा लगे ,
पर सच तो ये है
रिश्तों मे उलझने
कम नहीं होती ,
हर किसी को
खुश करने के चक्कर मे
पीस जातें हैं
आंटे की चक्की में
 घुन की तरह  .........
हाँथ कुछ नहीं आता
सिवाये
अपनों की बातों की बेंत के .......
जो चाह कर भी
मन भूल नहीं पाता ,
घाव जो इतने गहरे
होते है
भरने के बाद भी
निशां छोड़ जातें हैं ,
काश ! हम
अपनों की बातें
प्यार से अपना पाते ,
या वो हमे प्यार से
समझा पाते ,
तो खिली धुप से
खिल उठते रिश्ते !!

रेवा