कर लो चाहे
जितनी बड़ी बड़ी
बातें.......
लिख लो चाहे
जो मन को अच्छा लगे ,
पर सच तो ये है
रिश्तों मे उलझने
कम नहीं होती ,
हर किसी को
खुश करने के चक्कर मे
पीस जातें हैं
आंटे की चक्की में
घुन की तरह .........
हाँथ कुछ नहीं आता
सिवाये
अपनों की बातों की बेंत के .......
जो चाह कर भी
मन भूल नहीं पाता ,
घाव जो इतने गहरे
होते है
भरने के बाद भी
निशां छोड़ जातें हैं ,
काश ! हम
अपनों की बातें
प्यार से अपना पाते ,
या वो हमे प्यार से
समझा पाते ,
तो खिली धुप से
खिल उठते रिश्ते !!
रेवा
रिश्तों के सत्य को बखूबी प्रस्तुत किया है, बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteshukriya Malti ji
Deleteरिश्तों के सत्य को बखूबी प्रस्तुत किया है, बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteसच बात रेवा अपनों के शब्दों के बेत बहुत गहरे घाव देते है ,बहुत ही सधे हुए शब्दों में बेहतरीन कविता :)
ReplyDeleteswagat mere blog par asha....shukriya sakhi
Deleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 02 मई 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteshukriya yashoda behen
Deleteबहुत सुन्दर रचना । साधुवाद
ReplyDeleteshiv raj ji dhanyavad
Deleteबहुत सुन्दर रचना । साधुवाद
ReplyDeleteरिश्तों को बड़ी सुंदरता से परिभाषित किया आपने।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (03-05-2016) को "लगन और मेहनत = सफलता" (चर्चा अंक-2331) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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श्रमिक दिवस की
शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
abhar Mayank ji
Deleteरिश्ते अगर सुलझें हो तो बचपन के खेल से खिलखिलाते हैं ,पर अगर उलझ जाएँ तो भूलभुलैया ......
ReplyDeletekya baat kahi nivedita ji.....shukriya
Deleteरेवा जी बहुत खूबसूरत रचना
ReplyDeleteरिश्तों कि परिभाषा को बहुत ही खूबसूरत शब्दों में उतारा है आपने । बधाई ।
shukriya vimmi ji
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteखूबसूरत लिखा है
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