रुक्मणि ,राधा ,मीरा हूँ
काम पड़े पर
दुर्गा काली सी
सशक्त भी हूँ मैं
काम पड़े पर
दुर्गा काली सी
सशक्त भी हूँ मैं
धरा हूँ धूरी हूँ
जूही की नन्ही कली हूँ
पर समय आ पड़े तो
बिजली भी हूँ मैं
अपने अहम से
कई बार तोड़ना
चाहते हैं ये पुरुष
पर कभी गुस्से
कभी प्यार से
पार कर ही लेती हूँ
हर युद्ध.....
जीवन के
तमाम रिश्ते निभाती
कभी उनसे पीड़ा मिले तो
उन्हें ताकत बनती
कर्मबद्ध हूँ मैं
नारी हूँ कोमल हूँ
तो क्या
कमज़ोर नहीं हूँ
तो क्या
कमज़ोर नहीं हूँ
रेवा
नारी शक्ति को बड़ी सुंदरता से चित्रित किया है आपने। नारी शक्ति को कोटि-कोटि नमन।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (18-05-2016) को "अबके बरस बरसात न बरसी" (चर्चा अंक-2345) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
shukriya mayank ji
Deleteसुन्दर ।
ReplyDeleteकिसी को कमजोर समझना उसकी भूल होती है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
नारी हूँ तो क्या कमजोर नही हूँ। सही कहा, आज की नारी तो सक्षम है हर परिस्थिति का मुकाबला करने के लिये।
ReplyDeleteshukriya yashoda behen
ReplyDeleteshukriya harshvardhan ji
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत ,बहुत बढ़िया प्रस्तुति
ReplyDeleteshukriya sanjay
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