चंदा ने आज लजाते हुए
सुनाई मुझे
अपनी चाँदनी से हुई मुलाकात........
पुर्णिमा कि हर रात
चंदा और चाँदनी की
होती है प्यार भरी बात !!
उसके बाद धीरे धीरे
चाँद हो जाता है मसरूफ़
और चांदनी उदास........
अमावस के दिन तो
बंद ही हो जाती है उनकी बात
पर चाँद भी ठहरा मजनू ,
मना ही लेता है अपनी लैला को
फिर खिल उठता है दोनों का प्यार ........
और धरती को भी मिल जाता है तब
जगमगाहट का उपहार !!!
रेवा
चंदा और उसकी चांदनी के प्यार से ये जग उजियारा ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरूवार (01-09-2016) को "अनुशासन के अनुशीलन" (चर्चा अंक-2452) पर भी होगी।
ReplyDelete--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
abhar mayank ji
Deleteआहा वहा ...चंदा और चांदनी का अमर प्रेम
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर शब्द रचना।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 09 सितम्बर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteshukriya digvijay ji
ReplyDeleteसुन्दर ।
ReplyDeleteसुन्दर! प्रकृति का मानवीकरण ,आभार।
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