पैंतालीस की होने को आई
पर आज भी
मैं अपने मन का
नही कर पाती हूँ ,
चाहती हूं अलसाई सी
सुबह अख़बार और चाय
के साथ बिताना
पर हर सुबह भाग दौड़ में
बीत जाती है ,
दोपहर होते ही
मन अमृता प्रीतम की
नज़्में पढ़ने को करता है ,
पर कभी काम तो कभी
पारिवारिक जिम्मेदारी
हाथ पकड़ लेती है ,
शाम ढले कॉफी की
चुस्कियों के साथ दोस्तों
का साथ चाहती हूं
पर शामें अक़सर
बजट और बच्चों के
भविष्य की चिंता में
बिता देती हूं ,
बस रात अपनी होती है
पर सपने भी कहाँ
हमारे मन मुताबिक आते हैं ,
पैंतालीस की होने को आई
पर आज भी
मैं अपने मन का
नही कर पाती हूँ ,
पर एक ज़िद
खुद को करने की छूट दी है
कि एक दिन मैं अपने मन की
जरूर पूरी करुँगी !!
पर आज भी
मैं अपने मन का
नही कर पाती हूँ ,
चाहती हूं अलसाई सी
सुबह अख़बार और चाय
के साथ बिताना
पर हर सुबह भाग दौड़ में
बीत जाती है ,
दोपहर होते ही
मन अमृता प्रीतम की
नज़्में पढ़ने को करता है ,
पर कभी काम तो कभी
पारिवारिक जिम्मेदारी
हाथ पकड़ लेती है ,
शाम ढले कॉफी की
चुस्कियों के साथ दोस्तों
का साथ चाहती हूं
पर शामें अक़सर
बजट और बच्चों के
भविष्य की चिंता में
बिता देती हूं ,
बस रात अपनी होती है
पर सपने भी कहाँ
हमारे मन मुताबिक आते हैं ,
पैंतालीस की होने को आई
पर आज भी
मैं अपने मन का
नही कर पाती हूँ ,
पर एक ज़िद
खुद को करने की छूट दी है
कि एक दिन मैं अपने मन की
जरूर पूरी करुँगी !!
रेवा
सुंदर कविता
ReplyDeleteshukriya lokesh ji
Deleteबेहतरीन..
ReplyDeleteआप सफल हों
इसी कामना के साथ
सादर
abhar yashoda behen
Deleteमन की बात बहुत सुन्दरता से कही है आपे
ReplyDeleteshukriya Meena ji....mere blog par apka swagat hai
Deleteबहुत सुन्दर कविता है।
ReplyDeleteshukriya arun ji
Deleteवाकई दिल की गहराईयों को छूने वाली एक खूबसूरत.... प्रस्तुति आभार !
ReplyDeleteshukriya sanjay
Deleteसटीक और सार्थक रचना
ReplyDeleteशुक्रिया onkar जी
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