एक पिंजरे से निकाल
कर दूसरे पिंजरे में
कैद करने के लिए ही तो
आज़ाद किया जाता है
पंछियों को,
उन्हें गर खुला छोड़
दिया तो डर है कहीं
आज़ाद हो वो
अपनी मनमानी न
करने लग जायें,
अपने मन से खुले
कर दूसरे पिंजरे में
कैद करने के लिए ही तो
आज़ाद किया जाता है
पंछियों को,
उन्हें गर खुला छोड़
दिया तो डर है कहीं
आज़ाद हो वो
अपनी मनमानी न
करने लग जायें,
अपने मन से खुले
आकाश में विचरने
न लग जायें ....
न लग जायें ....
अरे पिंजरे में रहेंगी
तभी तो वो अपने
स्वामी के भरोसे
जीयेंगी
तभी तो वो अपने
स्वामी के भरोसे
जीयेंगी
वो देंगे तो खायेंगी
नहीं तो भूखे ही रहेंगी
उनका जब मन किया
उन्हें पिंजरे से निकाल
खेलेंगे
और फिर पिंजरे में
उनका जब मन किया
उन्हें पिंजरे से निकाल
खेलेंगे
और फिर पिंजरे में
कैद कर देंगे
ये क्रम सालों चलता
ये क्रम सालों चलता
रहता है
लेकिन सालों ऐसे
रहते रहते
वो अपनी उड़ान ही
भूल जातीं हैं
रहते रहते
वो अपनी उड़ान ही
भूल जातीं हैं
और यही तो सारा खेल है .....
रेवा
रेवा