मैं एक गृहिणी हूँ
सुबह के आकाश का रंग
देखना चाहती हूँ
पर नहीं पहचानती
नहीं छू पाती सूरज की
किरण
नहीं सुन पाती
मधुर संगीत
नहीं महसूस कर पाती
वो ताज़ी हवा
नहीं जी पाती सुबह
वो उठते ही दौड़ती है
रसोई में वही है
उसका आकाश
सूरज की बजाय वो
आग का रंग देखती है
संगीत की बजाय
सुनती है आवाज़ें
फरमाइशों की
टिफ़िन और नाश्ते में
परोस देती है
ताज़ी हवा
धो देती है सुकून के पल
कपड़ों के साथ
फिर सूखा देती है अपनी
ख्वाहिशें
और तह लगा कर रख
देती है अपने ख़्वाब
बच्चे बड़े हो जातें हैं
वो जवान से बूढ़ी हो
जाती है
पर ये क्रम
अनवरत चलता
रहता है जैसे
सुबह संग सूरज
#रेवा
देखना चाहती हूँ
पर नहीं पहचानती
नहीं छू पाती सूरज की
किरण
नहीं सुन पाती
मधुर संगीत
नहीं महसूस कर पाती
वो ताज़ी हवा
नहीं जी पाती सुबह
वो उठते ही दौड़ती है
रसोई में वही है
उसका आकाश
सूरज की बजाय वो
आग का रंग देखती है
संगीत की बजाय
सुनती है आवाज़ें
फरमाइशों की
टिफ़िन और नाश्ते में
परोस देती है
ताज़ी हवा
धो देती है सुकून के पल
कपड़ों के साथ
फिर सूखा देती है अपनी
ख्वाहिशें
और तह लगा कर रख
देती है अपने ख़्वाब
बच्चे बड़े हो जातें हैं
वो जवान से बूढ़ी हो
जाती है
पर ये क्रम
अनवरत चलता
रहता है जैसे
सुबह संग सूरज
#रेवा