उलझे रहे हम
ज़िन्दगी के सफर में
इस कदर
न दिन की रही खबर
न ही शाम का रहा ख्याल
इस कदर
न दिन की रही खबर
न ही शाम का रहा ख्याल
थक कर हर रात बस
ख़्वाबों की गोद में
पनाह ले ली
ख़्वाबों की गोद में
पनाह ले ली
कभी देखा ही नहीं
सुबह की सिंदूरी रोशनी
कभी सुना ही नहीं
पंछियों का कलरव
कभी महसूस नहीं किया
सुहाना मौसम
सुबह की सिंदूरी रोशनी
कभी सुना ही नहीं
पंछियों का कलरव
कभी महसूस नहीं किया
सुहाना मौसम
भागते रहे बस हर रोज़
चिन्ता लिए कैसे होगा सब ??
सीमित आमदनी
तो सीमित साधन
कैसे चलेगा संसार ??
चिन्ता लिए कैसे होगा सब ??
सीमित आमदनी
तो सीमित साधन
कैसे चलेगा संसार ??
पति, बच्चे और घर
का ख़याल बस यही
बन गया जीने का आधार
अब जब कभी आती है
बारी इन सब से थोड़ा सा
निकलने की तो पैर
डगमगाते हैं
बारी इन सब से थोड़ा सा
निकलने की तो पैर
डगमगाते हैं
सोच, मन साथ नहीं देता
घर में एक कोना
भला सा लगता है
चाहत का चाहतों ने ही
कब का अंतिम संस्कार
कर दिया
प्यार की मद्धम रोशनी
अब बुझ गयी है
उसे बस किताबों में
पढ़ना भला लगता है
कब का अंतिम संस्कार
कर दिया
प्यार की मद्धम रोशनी
अब बुझ गयी है
उसे बस किताबों में
पढ़ना भला लगता है
लेकिन विवेक ये
कहता है अब बस
कुछ साल
अब ख़ुद के लिए जी
और देख
जीवन की सुबह
और शाम दोनों
सिंदूरी होते हैं
कहता है अब बस
कुछ साल
अब ख़ुद के लिए जी
और देख
जीवन की सुबह
और शाम दोनों
सिंदूरी होते हैं
#रेवा