कभी ध्यान से
देखा है
उन भिखारियों को
जो कटोरा लेकर
पीछे पीछे आते हैं
गिड़गिड़ाते रहते हैं
किसी भी तरह
पीछा नहीं छोड़ते
चाहे उनका अपमान करो
या डांट लगाओ
तरह तरह से कोशिश
करते रहते हैं
वैसा ही हाल होता है
उन लोगों का जो वोट मांगते हैं
तरह तरह से प्रलोभन देते हैं
५ साल में काया पलट की
बात करते हैं
गरीबों को लालच दे कर लुभाते हैं
पर पीछा नहीं छोड़ते
उन लोगों का जो वोट मांगते हैं
तरह तरह से प्रलोभन देते हैं
५ साल में काया पलट की
बात करते हैं
गरीबों को लालच दे कर लुभाते हैं
पर पीछा नहीं छोड़ते
जानते हैं दोनो में अंतर क्या है
बस इतना की
भिखारी अपने पेट की आग
शांत करने के लिए मांगता है
और ये कुर्सी और धन की
लालसा लिए मांगते हैं
बस इतना की
भिखारी अपने पेट की आग
शांत करने के लिए मांगता है
और ये कुर्सी और धन की
लालसा लिए मांगते हैं
एक के कपड़े मैले और
हाथ में कटोरा है
दूजे के सफ़ेद झक कपड़े हैं
और दोनों हाथों में कटोरा है
पर भीख दोनो ही मांगते हैं
हाथ में कटोरा है
दूजे के सफ़ेद झक कपड़े हैं
और दोनों हाथों में कटोरा है
पर भीख दोनो ही मांगते हैं
पर भीख दोनों ही मांगते हैं
#रेवा
#रेवा
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 08/02/2019 की बुलेटिन, " निदा फ़जली साहब को ब्लॉग बुलेटिन का सलाम “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteshukriya
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (10-02-2019) को "तम्बाकू दो त्याग" (चर्चा अंक-3243) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
abhar
Deleteबिल्कुल सही। सत्य का दर्शन कराती रचना हेतु अनन्त शुभकामनाएं आदरणीय रेवा जी।
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया
Deleteएक मजबूरी में मांगता है और एक माँगकर मजबूर कर देता है। सुन्दर रचना।
ReplyDeleteशुक्रिया
Delete